मेटिक (मेट्रिक) बोर्ड का रिजल्ट आने वाला होगा। गाँव में ये मौसम
लड़कों के भागने का होता है। रिजल्ट से डरे लड़के घर से छिपकर शहर की तरफ
चले जाते हैं। भागे हुए लड़के के घर में हाय तौबा का आलम होता है। सबसे
पहले लड़के के दोस्तों से तफ़सील की जाती है। किसी प्यार-व्यार के मामले को
जानने की कोशिश होती है। लड़के की किताब वाले ताखे में चिट्ठी या गुलाब के
सूखे पत्तियों को खोजा जाता है।
फिर आसपास के गाँव तक में किसी लड़की के गायब होने की खोजबीन की जाती है। और थकहार कर लड़के के लौट आने के इंताजर किया जाता है। इस बीच मुफ्त चाय पीने की आदत वाले पड़ोसी अचानक शुभचिंतक हो जाते हैं। घर में उनका आना जाना बढ़ जाता है।
दूसरी तरफ कई बार भागे हुए लड़के के पास सिर्फ इतनी रकम होती है कि वो टिकट और दो समय का खाना खाकर पटना तक ही पहुंच पाता है। ट्रेन में बेटिकट पकड़े जाने पर कोई भलामन टीटी कभी डांट-फटकार कर घर भेज देता है। तो कभी ट्रेन उतार देता है।
उन दिनों मैंने भी कई बार भागने का प्लान बनाया। लेकिन रेलवे टीशन तक जाते-जाते हिम्मत जवाब दे जाता।
हर भागे हुए लड़के के सपनों में होता है उसका अपना एक शहर। मसलन मेरे लिये वो शहर दिल्ली थी। मैं इमेजिन करता- गर्म दुपहर में कनॉट प्लेस के किसी वातानकूलित शो रुम के बाहर अखबार बेच रहा हूं कि अचानक दरवाजा खुलता है और ऐसी की ठंडक से मन अंदर तक भींग जाता है। उस इमेजिनेशन में रहने के लिये बापानगर। नागलामाची। नागलोई। मुंडका जैसे जगह होते।
कलकत्ता और बम्बई जाने का ख्याल नहीं आता। शायद इसलिए भी क्योंकि उन दिनों सुना करता दिल्ली है दिल वालों की। कलकत्ता कंगालों की और बंबई पैसे वालों की। और मुझे दिल वाला मामला ज्यादा लुभाता था।
बहरहाल, दिल्ली आने के बाद उन जगहों पर कभी नहीं जा पाया। उन जगहों का नक्शा भी नहीं मालूम। सुनता हूं कॉमनवेल्थ के बाद नागलामाची जैसे इलाके नई देल्ही के नक्शे से हटा दिये गए हैं। नहीं पता क्या अब भी कोई भागने वाला लड़का देखता होगा नागलामाची में रहने का सपना। नहीं पता भागने वाले लड़कों के सपनों में अब आता है कौन सा शहर। नहीं पता क्या अब भी मेरे भागे हुए दोस्त मिलते हैं कनॉट प्लेस। रहते हैं बापा नगर। जो नयी देल्ही की सीमा से है बहुत दूर। नहीं पता। अपना अतीत। भूलने लगा हूं अपने लोग, रहते हुए न्यू देल्ही की सीमा में। हां, देल्ही दिल्ली नहीं है और न ही दिल वालों के लिये कुछ रखा है इस शहर में
जवान होते लड़के का शहर सीरीज से।
फिर आसपास के गाँव तक में किसी लड़की के गायब होने की खोजबीन की जाती है। और थकहार कर लड़के के लौट आने के इंताजर किया जाता है। इस बीच मुफ्त चाय पीने की आदत वाले पड़ोसी अचानक शुभचिंतक हो जाते हैं। घर में उनका आना जाना बढ़ जाता है।
दूसरी तरफ कई बार भागे हुए लड़के के पास सिर्फ इतनी रकम होती है कि वो टिकट और दो समय का खाना खाकर पटना तक ही पहुंच पाता है। ट्रेन में बेटिकट पकड़े जाने पर कोई भलामन टीटी कभी डांट-फटकार कर घर भेज देता है। तो कभी ट्रेन उतार देता है।
उन दिनों मैंने भी कई बार भागने का प्लान बनाया। लेकिन रेलवे टीशन तक जाते-जाते हिम्मत जवाब दे जाता।
हर भागे हुए लड़के के सपनों में होता है उसका अपना एक शहर। मसलन मेरे लिये वो शहर दिल्ली थी। मैं इमेजिन करता- गर्म दुपहर में कनॉट प्लेस के किसी वातानकूलित शो रुम के बाहर अखबार बेच रहा हूं कि अचानक दरवाजा खुलता है और ऐसी की ठंडक से मन अंदर तक भींग जाता है। उस इमेजिनेशन में रहने के लिये बापानगर। नागलामाची। नागलोई। मुंडका जैसे जगह होते।
कलकत्ता और बम्बई जाने का ख्याल नहीं आता। शायद इसलिए भी क्योंकि उन दिनों सुना करता दिल्ली है दिल वालों की। कलकत्ता कंगालों की और बंबई पैसे वालों की। और मुझे दिल वाला मामला ज्यादा लुभाता था।
बहरहाल, दिल्ली आने के बाद उन जगहों पर कभी नहीं जा पाया। उन जगहों का नक्शा भी नहीं मालूम। सुनता हूं कॉमनवेल्थ के बाद नागलामाची जैसे इलाके नई देल्ही के नक्शे से हटा दिये गए हैं। नहीं पता क्या अब भी कोई भागने वाला लड़का देखता होगा नागलामाची में रहने का सपना। नहीं पता भागने वाले लड़कों के सपनों में अब आता है कौन सा शहर। नहीं पता क्या अब भी मेरे भागे हुए दोस्त मिलते हैं कनॉट प्लेस। रहते हैं बापा नगर। जो नयी देल्ही की सीमा से है बहुत दूर। नहीं पता। अपना अतीत। भूलने लगा हूं अपने लोग, रहते हुए न्यू देल्ही की सीमा में। हां, देल्ही दिल्ली नहीं है और न ही दिल वालों के लिये कुछ रखा है इस शहर में
जवान होते लड़के का शहर सीरीज से।