Wednesday, September 28, 2016

Taking bath

A jnu worker taking bath

बादलों के भीतर झांकना

बचपने में उसे कहा गया- जो इस दुनिया से गुजर जाते हैं वो तारे बन जाते हैं।
उसने भी अपने लिये आसमान का एक तारा चुन लिया था। वो जो इस तरफ से उस तरफ चलता रहता था- हाँ, वही तारा। रुकी चीजों को वो अपना नही कह पाता।
छत पर लेटे लेटे वो उसी तारे से बात करता। अपने सुख, दुःख, एग्जाम्स , स्कूल, प्रेम, दोस्त ,घर सबके बारे में बताता।
लेकिन वो तारा दूर था। बहोत दूर। दूर से ही टिमटिमाता था।
जैसे जैसे वो बड़ा होता गया ये दूरी उसे समझ आने लगी।
उसने धीरे धीरे तारे से बात बंद कर दी।
बाद के दिनों में बादल उसे ज्यादा करीब लगा। जब वो पहली बार हवा में था- बादल को एकदम करीब से देखा। इतना कि लगे खिड़की से हाथ निकाल मुट्ठी में भर ले।
नर्म , मुलायम, पानी से भरा। उसे लगा जो गुजर गया वो तारे नही बादल बनते होंगे। धूप में सर पर छाते की तरह, रेगिस्तान के अकेलेपन में उम्मीद की तरह, घास पर ओस की बूंद की तरह, पहाड़ों पर रूह के भीतर खूब ठंडी साँस की तरह।
वो बादलों से बात करने लगा था।
लंबे लंबे रोड ट्रिप में
शहर के भीतर पैदल चलते
वो कनखियों से बादल से बात करता
बड़ा हो गया था,
दूसरे लोग पागल कहने लगे थे
वो उस गुजर गए से बात करता ।
लोग पागल कहते
वो बात करता
लोग पागल कहते
वो बात करता।
करता ही रहता....

बेकाबू

 रात के ठीक एक बजे के पहले. मेरी बॉलकनी से ठीक आठ खिड़कियां खुलती हैं. तीन खिड़कियों में लैपटॉप का स्क्रीन. एक में कोई कोरियन सीरिज. दो काफी...