Monday, January 27, 2020

मेरे साथ ऐसा क्यों होता है?

मेरे साथ ऐसा क्यों होता है कि मैं सुख और शांति में लिख नहीं पाता।

कई महीनो से मैं लिखना चाहता हूं। लेकिन ऐसा लगता है लिखना भूल गया हूं। क्या मैं सिर्फ दुख को लिख सकता हूं।

क्या मैं लिखना भूल रहा हूं? लेकिन इस भूलने का कोई अफसोस क्यों नहीं है? क्यों लिखने में इतना सूखापन आ गया है। एकदम रफ।

ऐसा तो नहीं था। क्या मेरा हासिल यही है?

इतनी शांति मे कब रहा? बिना किसी जिम्मेदारियों के। सर्दी में किसी पार्क में धूप सेंकते हुए, रेडियो पर पुराने गाने सुनते हुए, उनींद में डूबे

या

अपने कमरे में। टेबल लैंप की पीली रौशनी में अपने प्रिय सिंगर को सुनते हुए और पसंद का ड्रिंक और अपना एकांत।

हां एकांत ही, अकेलापन नहीं। बिल्कूल एकांत। अब ये खलता नहीं। ऐसा नहीं लगता कि अपने एकांत से भागकर किसी के पास चला जाउं।

पिछले कई महीने से इसी कमरे में लगभग बंद हूं। दिन दिन भर। रात रात भर। कभी किसी के साथ कभी कभी बिल्कूल अकेले।

नयी चुनौतियों से घिरा, नये कामो मे तल्लीन।

ओह, सुख तुम यही तो नहीं हो.?

नशे में डूबा हुआ, दुनिया के तमाम बोझों से दूर, तमाम चर्चों और नारो से इतर।

बेचैनियों के बावजूद।

भटक कर चला आना

 अरसे बाद आज फिर भटकते भटकते अचानक इस तरफ चला आया. उस ओर जाना जहां का रास्ता भूल गए हों, कैसा लगता है. बस यही समझने. इधर-उधर की बातें. बातें...