Wednesday, October 12, 2016
#Georgestrait
#Georgestrait
को सुनते हुए हम किस दुनिया में खो जाते हैं। किसी दूर कंट्री साइड।
पहाड़ों , नदियों में कहीं डूबने लगते हैं। लगता है हम किसी खेत की मेड़ पर
खड़े हैं, फिर वहीँ बैठ गए, और देर रात तक बैठे रहे- खाली आसमान को ताकते
ताकते सो गए। और सुबह से थोड़ा पहले हल्की हल्की ठण्ड से जगे, जैसे किसी
अक्टूबर की धुंधली सुबह शहर के कमरे में जग कर चादर खोजते हैं उतनी ही
ठण्ड।
Saturday, October 1, 2016
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कुछ चीजों का लौटना नहीं होता....
क्या ऐसे भी बुदबुदाया जा सकता है? कुछ जो न कहा जा सके, जो रहे हमेशा ही चलता भीतर एक हाथ भर की दूरी पर रहने वाली बातें, उन बातों को याद क...