हमेशा से यही होता आया है। स्पेस देना। फिर आराम से सामने वाले को वॉक ओवर दे देना।
दूसरों को। दूसरों पर भरोसा करना। और हर बार भरोसे को तुड़वा लेना। हर बार खुद को रिस्क में डालना।
किसी किसी रोज लगता है जिन्दगी के सारे तनाव को एक कागज पर लिखकर कहीं दूर डस्टबीन में डाल आऊँ और फिर फ्रेश लिस्ट बनाऊं। सारे नये सपने। चाहतें। ललक। सबकुछ को एक सादे कागज पर फिर से क्रमवार सजाऊं।
सारी यादें, सारी वर्तमान की उलझने। सारी दिक्कतें। सारी परेशानियों को कह दूं - बॉस बहुत हो गया। अब गुड बाय करते हैं आपको। मन को हारते देखना हर रोज ही, कितना बुरा है। कितना उदास है हर चीज का क्षणिक होना। स्नेह का न होना। सबकुछ व्यवस्थित होने का एक्ट करते रहना।
टुक टुक दुनिया को खिसकते देखना और अपने पैर का एक ही जगह जम जाना।
आईये जी। कुछ परेशानियों का चटनी बनाते हैं। कुछ को करते हैं विदा। चलते हैं नयी उम्मीद की तरफ। देखने का साहस करते हैं पहाड़। रौंदते है पुरानी कसैली यादें।
कब तक दुख ही लिखा जाता रहेगा? कब तक उदासियों के फुटनोट्स दर्ज किये जाते रहेंगे? कब तक सबकुछ अच्छा बने रहने की उम्मीद की जाती रहेगी? कब तक जिन्दा रहने की कोशिश में घुटता जाता रहेगा? कब तक?
दूसरों को। दूसरों पर भरोसा करना। और हर बार भरोसे को तुड़वा लेना। हर बार खुद को रिस्क में डालना।
किसी किसी रोज लगता है जिन्दगी के सारे तनाव को एक कागज पर लिखकर कहीं दूर डस्टबीन में डाल आऊँ और फिर फ्रेश लिस्ट बनाऊं। सारे नये सपने। चाहतें। ललक। सबकुछ को एक सादे कागज पर फिर से क्रमवार सजाऊं।
सारी यादें, सारी वर्तमान की उलझने। सारी दिक्कतें। सारी परेशानियों को कह दूं - बॉस बहुत हो गया। अब गुड बाय करते हैं आपको। मन को हारते देखना हर रोज ही, कितना बुरा है। कितना उदास है हर चीज का क्षणिक होना। स्नेह का न होना। सबकुछ व्यवस्थित होने का एक्ट करते रहना।
टुक टुक दुनिया को खिसकते देखना और अपने पैर का एक ही जगह जम जाना।
आईये जी। कुछ परेशानियों का चटनी बनाते हैं। कुछ को करते हैं विदा। चलते हैं नयी उम्मीद की तरफ। देखने का साहस करते हैं पहाड़। रौंदते है पुरानी कसैली यादें।
कब तक दुख ही लिखा जाता रहेगा? कब तक उदासियों के फुटनोट्स दर्ज किये जाते रहेंगे? कब तक सबकुछ अच्छा बने रहने की उम्मीद की जाती रहेगी? कब तक जिन्दा रहने की कोशिश में घुटता जाता रहेगा? कब तक?