Sunday, May 3, 2020

किसी रोज के बारे में




वो किसी एक जगह क्यों नहीं टिक पाता है? कोई एक बिंदू जहां वो अटक जाये तो कितना अच्छा हो। सुकून हो। लेकिन उस एक बिंदू पर पहुंच कर थोड़ी देर सुस्ता भर पाता है और फिर वहां बेचैनी।

फिर किसी और बिंदू की तलाश। हर तरफ कुछ नया करने की ललक। जो कर रहा हो उससे जल्दी ही असंतुष्टि।





लेकिन क्या ये असंतुष्टि उसके अकेले का है। उसका अपना है। या फिर दुनिया के डर ने पैदा किया है?

क्या यह सबकुछ ही। शर्मनाक चाहतों से नहीं जुड़ा। या कि दमित कुंठाओं से। या कि ऐसी स्मृतियों से जिसका सिरा न पकड़ में आता हो?




वो एकदिन उठकर चुपचाप चला गया। बुदबुदाते हुए अपने ही भीतर। जब लौटा तो उसके हाथों में फूलों की टहनियां थी, और ऊंगलियों में कांटे चुभ रहे थे।


कुछ चीजों का लौटना नहीं होता....

 क्या ऐसे भी बुदबुदाया जा सकता है?  कुछ जो न कहा जा सके,  जो रहे हमेशा ही चलता भीतर  एक हाथ भर की दूरी पर रहने वाली बातें, उन बातों को याद क...