आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों का रिहाई मंच
सम्पर्क- लाटूश रोड लखनऊ
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Press release
खुफिया एजेंसियों की सांप्रदायिकता देश की एकता के लिए खतरा
बाटला हाउस और बेगुनाहों की रिहाई का सवाल पर कांग्रेस-सपा के लिए महगा पड़ेगा
लखनऊ 19 सितम्बर 2012/ आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों के रिहाई मंच
द्वारा कांग्रेस-सपा और खुफिया एजेंसियों की साम्प्रदायिकता के खिलाफ
सम्मेलन प्रेस क्लब लखनऊ में सम्पन्न हुआ।
आज समाजवादी नेता साम्प्रदायिकता की गोद में बैठे हैं। ये नेता अपने
घोटालों को छिपाने के लिए साम्प्रदायिकता का सहारा लेते हैं। सीपीआई के
नेता अतुल अंजान ने कहा कि सरकार अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए वो तमाम
हथकंडे अपनाती है। ये सवाल सिर्फ हिन्दु-मुसलमान की नहीं है, ये
दबे-कुचले का सवाल है। सपा सरकार अपने घोषणा पत्र के अनुसार अगर तीन
महीने में निर्दोषों की रिहाई या उनके मुकदमों की समीक्षा नहीं करती हसै
तो सड़क पर आंदलोन किया जाए। निर्दोष लोगों के छूटने पर उन्हें मुआवजा
दिया जाए।
भारतीय खुफिया एजेंसियों द्वारा सउदी अरब से गायब किए गए दंरभंगा बिहार
निवासी फसीह महमूद के भाई सबीह महमूद ने कहा कि सउदी अरब की सरकार ने
बार-बार कहा है कि भारतीय एजेंसियों द्वारा फसीह पर लगाए गए आरोप तार्किक
नहीं हैं फिर भी कांग्रेस सरकार उन्हें आतंकी के बतौर प्रचारित कर रही
है। और यहां तक कि उनकी पत्नी निकहत परवीन से उनसे मिलने जाने की इजाजत
तक नहीं दे रही है।
संदीप पाण्डे ने कहा कि राष्ट्र की आत्मा को शांत करने के लिए अफजल गुरू
को फांसी दिया जाता है। मुस्लिम मुहल्लों में कई बार गाडि़यां आती हैं जो
नम्बर प्लेट का नहीं होती वो मुसलिम लड़कों को पकड़ कर ले जाती है। और
बाद में उन्हें खतरनाक आतंकी और इण्डियन मुजाहिदीन का एरिया कमांडर बताकर
जेलों में डाल देती हैं। राज्य सत्ता के अंदर तक साम्प्रदायिकता घुसी हुई
है। ये पूरा मामला अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य से जुड़ा हुआ है। इस देश की
नीतियां अमरीका और इजरायल तय कर रहे हैं।
आतंकवाद के आरोपियों का मुकदमा लडने के कारण हिन्दुत्वादी गिरोहों द्वारा
हमले का शिकार हुए उज्जैन से आए एडवोकेट नूर मुहम्मद ने कहा कि आज कोई
मुसलमान नहीं जिसे भरोसा हो कि वो घर से निकला है तो वापस घर लौट आएगा।
बटाला हाउस कांड मुसलमानों को संदेश था कि यदि तुम अपने हक की बात करोगे
तो तुम्हें ऐसे ही मारा जाएगा। पुलिस और अदालत के सामने मेरे उपर हमला
हुआ लेकिन किसी ने बचाने की कोशिश नहीं की। बीजेपी वाले कानून का उल्लंघन
करते हैं तो उन्हें थाने से ही जमानत दे दी जाती है लेकिन किसी मुसलमान
पर आरोप लगते ही उसे दो-दो साल जेल में सड़ा दिया जाता है।
उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस निरिक्षक एसआर दारापुरी ने कहा कि खुफिया और
पुलिस की साम्प्रदायिकता देश की एकता और अखंडता के समक्ष सबसे बड़ी
चुनौती है। आज फसीह महमूद का केस इसका उदाहरण है। जिसे बिना सरकार को
विश्वास में लिए सउदी अरब से भारतीय खुफिया एजेंसियों ने गायब कर दिया और
पूरी दुनिया में भारत की सम्प्रभुता का मजाक बना दिया।
वरिष्ठ समाजवादी नेता मुहम्मद शुएब एडवोकेट ने समाजवादी पार्टी पर
मुसलमानों को धोखा देने का आरोप लगाते हुए कहा कि सपा में आतंकवाद के नाम
पर कैद निर्दोषों को तो नहीं छोड़ा उल्टे छह महीने में पांच बड़े दंगे
करवाकर अपनी साम्प्रदायिक एजेंडे के तहत निर्दोषों की रिहाई के सवाल से
ध्यान हटाने की कोशिश की है। जिसका खामियाजा सपा को 2014 में भुगतना
पड़ेगा।
खुफिया विभाग की सांप्रदायिकता के शिकार रहे सैयद मुबारक ने पुलिस द्वारा
दी गयी प्रताड़ना के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि खुफिया ने
उन्हें सिर्फ इस आधार पर कश्मीरी आतंकी बताकर दो साल तक जेल में बंद रखा
कि वे देखने में गोरे और लंबे हैं। जबकि उनका कश्मीर से कोई ताल्लुक नहीं
हे वे सीतापुर यूपी के रहने वाले है।
आजमगढ़ से आए रिहाई मंच के नेता मसीहुद्ीन संजरी ने कहा कि आतंकवाद के
नाम पर पकड़े गए बगुनाहों के सवाल पर न तो मानवाधिकार, न अल्पसंख्यक आयोग
और न प्रदेश सरकार आवाज उठाना जरुरी समझती है। आज सवाल होना चाहिए कि अगर
आईबी सांप्रदायिक हो रहा है तो इससे किन राजनीतिक और कारपोरेट जमातों के
हित सध रहे हैं।
पत्रकार अबू जफर ने कहा कि बाटला हाउस घटना की जांच न कराना मुसलमानों को
आगे ऐसे किसी भी मामले में न्याय न देने की रणनीति का हिस्सा है। क्योंकि
बाटला हाउस की जांच न कराना एक नजीर बन गया है जिसे आगे भी सरकारें
दुहराएगी।
जनसंघर्ष मोर्चा के नेता दिनकर कपूर ने कहा कि अगर आज मुसलमान अपने
लोकतांत्रिक अधिकार के लिए मांग कर रहा है तो उसे आतंकवादी घोषित कर दिया
जाता है। ये सब अमरीका और इजरायल के दबाव में किया जा रहा है।
इंडियन नेशनल लीग के सुलेमान ने कहा कि इस मसले पर आंदोलन की जरुरत है
जिसे हमें आम नीतिगत सहमति के साथ आगे बढ़ाना होगा। उन्होंने कहा कि
आतंकवाद के नाम पर मुसलमानों की गिरफ्तारियां के पीछे एक खास तरह की
साम्प्रदायिक और पूंजीवादी राजनीति है जिसका जवाब हमें राजनीतिक तौर पर
देना होगा।
एपवा की ताहिरा हसन ने कहा कि हमारी लड़ाई स्टेट के साथ होनी चाहिए।
दरअसल ये लाशों और साम्प्रदायिकता की बदौलत वोट बैंक की राजनीति करती है।
जिसे हमें जनगोलबंदी से निपटना होगा।
सम्मेलन का विषय प्रवर्तन करते हुए शाहनवाज आलम ने कहा कि खुफिया
एजेंसियों ने कहा कि लोकतंत्र और उससे प्राप्त जनता की राजनीतिक और
मानवाधिकारों को बंधक बना लिया है। जिसके कारण ये एजेंसियां आंतरिक
सुरक्षा नीतियों को वैसे ही नियंत्रित करने लगी है जैसे कारपोरेट घराने
आर्थिक नीतियां नियंत्रित करने लगी हैं। जिससे जनता द्वारा चुनी गई सरकार
नाम की चीज का लोप होने लगा है।
सम्मेलन का संचालन राजीव यादव ने किया।
सम्मेलन में नौ सूत्रीय राजनीतिक प्रस्ताव पारित किया गया-
1- राजनीतिक व सामाजिक संगठनों की गतिविधियों पर खुफिया विभाग की रिपोर्ट
को सूचना के अधिकार के तहत लाया जाय।
2- सरकार इंडियन मुजाहिदीन पर तत्काल श्वेत पत्र जारी करे।
3- बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ काण्ड और कतील सिद्दिकी की पुणे की यर्वदा
जेल में हुई हत्या की न्यायिक जांच कराओ!
4- भारतीय जांच एजेंसियों द्वारा सउदी से गायब किए गए फसीह महमूद को
सरकार तत्काल भारत लाए!
5- तारिक-खालिद की फर्जी गिरफ्तारी पर गठित आर डी निमेष जांच आयोग की रपट
सपा सरकार तत्काल सार्वजनिक करे!
6- बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को छोड़ने का वादा पूरा करे सपा सरकार!
7- पुलिस अधिकारियों को दुनिया के सबसे बडे आतंकी देशों इजराइल और अमरीका
ट्रेनिंग के लिये भेजना तत्काल बंद करो!
8- सपा सरकार में हुए दंगों और उसमें सपा नेताओं-मंत्रियों की भूमिका पर
चुप्पी क्यों मुलायम सिंह जवाब दो।
9- पत्रकार एसएमए काजमी और मतिउर्रहमान को तत्काल रिहा करो।
सम्मेलन में सोशलिस्ट फ्रंट के राष्ट्रीय संयोजक लल्लू सैनी, मोहम्मद
अकबर जफर, राघवेंन्द्र प्रताप सिंह, तारिक शफीक, अजय सिंह, अरुन्धती
ध्रुव, सिद्धार्थ कलहंस, लक्ष्मण प्रसाद, अनुज शुक्ला, फौजिया, रेनू
मि़श्रा, गजाला, हमीदा, केके वत्स, महेन्द्र सिंह, बलबीर यादव, गुफरान
सिद्दिकी, अविनाश चंचल, भन्ते करुणाशील इत्यादि उपस्थित रहे।
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