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कुछ नौकरीशुदा घर के बच्चे स्कूल तो जाने ही लगे हैं |
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हाल ही में अपने गांव गया था। एक ऐसा गांव जहां के लोग आज भी आजादी
पूर्व की स्थिति में ही रह रहे हैं। गांव में मेरे अखबार में छपे कुछ
रिपोर्ट मेरे जाने से पहले पहुंच चुके थे। ज्यादातर उन लड़कों के द्वारा जो
पटना के छोटे-छोटे कमरों में रहकर बड़े-बड़े सपने देखते हैं और अपनी देह
की माटी को झाड़ते रहते हैं। तो इस बार मेरा गांव का अनुभव कुछ अलग होना तय
था। जिस-जिस ने जाना कि मैं आया हूं मिलने आ गये। सबलोग पूछते कैसे काम
करते हो, क्या-क्या किये अभी तक, कभी हमरो बारे में कुछ लिख दो, देखो हमको
चापाकल नहीं मिला है, कि हमको इंदिरा आवास नहीं मिल पाया। एक अखबार में काम
करने वाले अदने से आदमी से इतनी उम्मीदें वो भी तब जब आज भी कुल चार अखबार
को पूरा गांव पढ़ता हो। मैं सोच में पड़ गया।
मैं जानबूझकर इसमें
नहीं जा रहा कि अखबार अपनी विश्वनियता खो रहे हैं या फिर कि पटना से दिल्ली
तक मीडिया को धड़ाधड़ गालियां दी जा रही हैं। लेकिन इन सबके बावजूद कुछ है
जो मुझे बारबार इसी पेशे की ओर खिंचती हैं। मैं सोचता हूं अगर मैं इस माटी
में न पैदा हुआ होता, यहां के दबे-कुचले लोगों के सवालों से रुबरु न हुआ
होता तो मुश्किल ही था कि मैं पत्रकारिता में आउं।
और आज जब मैं अपने
गांव से लौट रहा हूं तो मन में एक विश्वास लेकर कि चाहे भूखमरी की नौबत आ
जाए करनी पत्रकारिता ही है। नहीं छोड़ सकता इसको। इन उम्मीदों के बोझ तले
दबा से महसूस कर रहा हू और ये भी जानता हूं कि इनके लिए अभी मैं कुछ कर भी
नहीं सकता लेकिन मन कहता है कि एक दिन वो जरुर आएगा।
लाख मीडिया बुरी
हो लेकिन आज भी उसपर कायम लोगों का अटूट भरोसा ही कुछ अच्छा करवाएगा।
जरुरत है इसके लिए जमीन तैयार करने की। क्योंकि हम लड़बो,मरबो और एक दिन
पक्का जीतबो रे।
मीडिया में काम कर रहे उन लाखों फर्सटेट लोगों के लिए ये गाना-
फर्सटियाओ नहीं पिया,
घबराओ नहीं पिया,
जो है रॉन्गवा जी
उसे सेट राइटवा करो जी पिया...
साथ में ये कुछ तस्वीरें-
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हर साल बाढ़ का खतरा बना रहता है |
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सड़के ठीक हैं क्योंकि बारिश का पानी नहीं |
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थैंक्स कूरियन साहब का। श्वेत क्रांति ने गांव को विदर्भ होने से बचा लिया |
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छोटी-छोटी दुकाने हैं- |
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डोम जाति का घर है। आज भी पेशा वही स्थिति वही |
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खैर वालमार्ट से इन्हें कोई खतरा नहीं |
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गांव की सड़के आज भी माटी की ही हैं |
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दलितों का आज भी शोषण होता ही है |
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इनके नसीब में अंग्रेजी स्कूल तो छोड़िये, सरकारी भी नहीं है |
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आज भी दबे कुचले लोग झोपड़ी बना कर ही रहते हैं
हर बारिश के बाद नया घर |
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फसल का बंटवारा बड़े जाति वाले अपनी मर्जी से करते हैं-चाहे नीतीश हो लालू हों |
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