जिदंगी की गाड़ी 9 साल आगे बढ़ चुकी थी। दिल्ली
की लड़की अब पटने की बहु बनकर लड़के को रोज कहा करती, “कब तक कलम-घसीट
नौकरियों के चक्कर में रहोगे, अपने बैच के दोस्तों को देखो कोई आईएएस तो
कोई एसएससी करके सैटल हो गया।” जो बदलाव, क्रांति जैसे शब्द प्यार शुरु
करने के उपकरण बने थे वो आज ऐब्स्ट्रैक्ट हो चुके थे।
प्यार, क्रांति की बात करने वालों पर हँस देने का मन होता। उनके लिए एक ही शब्द सूझता- एडोलेसेंट!
और बीता हुआ कल एक घटना मात्र लगता...जिसमें कुछ भी विशेष नहीं। जिसमें विशेष नहीं वो स्टोरी नहीं पत्रकारिता ने इतना तो सीखा ही दिया था
सेन्ट्रल
पार्क में बैठे-बैठे अचानक उसने उसके हाथों को जोर से खींच कर अपने उपर
लेटा लिया। पटने के लड़के ने गुदगुदी और सिहरन को एक साथ महसूस किया। लड़के
को लगा कि कोई फिल्मी सीन सिनेमा के पर्दे से बाहर निकल उसके सामने चलने
लगा हो। पटने के लड़के के परिवार और समाज की अपनी (अभाव की) सांस्कृतिक
पृष्ठभूमि थी, जहां लड़की के साथ बात करना भी अनैतिकता के मोहल्ले में घुस
जाना था, उसके शरीर को छूना साफ पतन।
कैम्पस
में दोनों के बीच कहां इतनी बातें हो पाती थी। बस एक स्माइल या फिर एक
हैलो-हाई उछाल के दोनों सामने से गुजर जाते थे। लेकिन कॉलेज के बाद अचानक
एक दिन दोनों हौज खास मेट्रो पर टकरा गए। बातों-ही-बातों में पता चला कि
उसका प्लेसमेंट पीटीआई में हुआ है। लड़के ने भी बताया कि उसका सेलेक्शन
एचटी हाउस में हुआ है। फिर तो लड़का रोज उसका मेट्रो पर इंतजार करने लगा ।
राजीव चौक दोनों साथ जाने लगे। कभी लड़की कूद कर लेडीज डब्बे में चली जाती
तो लड़के का चेहरा उतर सा जाता था। धीरे-धीरे लड़के ने उसको अपने सपने में
लाना शुरू कर दिया था। कभी कॉफी हाउस तो कभी सेंट्रल पार्क। हर रोज के ऑफर
से लड़की को कोफ्त होने लगी। एक दिन लड़का मेट्रो पर इतंजार कर रहा
था..एक.दो..चार..पांच मेट्रो उसने छोड़ दी। लेकिन लड़की नहीं आयी। उसका फोन
भी ऑफ जा रहा था।
पटने
से आने के बाद पहली बार बिहार से आज एक दोस्त आया।देखते ही हल्ला करने
लगा..''अरे,का का लाया है रे।" फिर उसके जवाब का उत्तर सुने बिना ही गांव
से लाया झोला खोलने लगा। छेना मुरखी,खुरमा और गया का तिलकुट-एक साथ इन सबको
देख कर टूट पड़ा दोस्त पूछता रहा.."अरे और का हाल चाल है तोहार"
पटने
का लड़का अपने यमुना पार वाले वन रुम सेट में सोया हुआ है। दोपहर में
लड़की आते ही बरसने लगती है, ''अभी तक खाना नहीं खाया , चाय पी के कब तक
जिंदा रहोगे। चलो केएफसी, चिकेन खाते हैं''।
"इन
बिहारी लड़कों के साथ यही प्रोब्लेम है- दो दिन हाय-हैलो से थोड़ा ज्यादा
बात कर लो और इन्हें प्यार हो जाता है।"- लड़की अपने दोस्तों से कह रही थी
पटने
का लड़का अपने मुर्खजी नगर वाले कमरे में लेटा-लेटा सोच रहा,"आखिर ये
तैयारी करने वाले लड़के संघी टाइप और इतने कट्टर हिन्दुत्व वाले क्यों होते
हैं"
615
से जनपथ की तरफ से उतर कर वे दोनों सेन्ट्रल पार्क की तरफ जाने लगे। इतने
में लड़की ने चलते-चलते अपने दोनों हाथों से उसके हाथों को जकड़ लिया। पटने
के लड़के को जैसे झटका सा लगा। हाथ छुड़ाते हुए बोला- "माना कि दिल्ली में
ये सब चलता है लेकिन मैं जहां से आया हूं ऐसा नहीं होता। मैं कंफर्ट फील
नहीं करता यार।"
पटने
का लड़का अभी हनुमान चलीसा खत्म करके ठाकुर भगवान को भोग लगा ही रहा था कि
लड़की पहुंच गई- "तुम क्या समझते हो कि पूजा करने से तुम्हे मीडिया में
नौकरी मिल जाएगी। सबसे पहले तो ये जमुना पार वाला कमरा शिफ्ट करके साउथ
दिल्ली में कमरा लो। और वहीं बसंत कुंजी पत्रकारों को पकड़ो.दो-चार महीने
आगे-पीछे करोगे तो कहीं सेट कर ही देंगे। "
"क्रांति...बदलाव..लेख..कहानी।
कमरे
में आज वो हॉट पैंट पहन कर आ गयी। पटने के लड़के के हाईस्कूल में जब कोई
लड़की जिन्स पहन कर आ जाती थी, तो स्कूल के टीचर उसे घूरते हुए समाजिक
परंपरा का पाठ पढ़ा जाते थे।
"मेरा
हाथ मत पकड़ो! ये सेन्ट्रल पार्क नहीं मेरा कमरा है।" अपने कमरे में पटने
का लड़का अपनी थोथी नैतिकता के प्रति अतिरिक्त सजग रहता।
आठ-बाई
दस के मुखर्जी नगर वाले कमरे के फर्श पर लेटे-लेटे पटने के लड़के के आंखों
के सामने उस दिन सेन्ट्रल पार्क में उसकी कही बातें फ्लैशबैक की तरह चलने
लगी- प्यार तो विजुअल आर्ट है, वर्डस का यहां क्या काम.....
पटने
से दोस्त का फोन आया है। कह रहा है, "क्या रे सुने हैं बड़का प्लेबॉय हो
गये हो। अरे पढ़े-लिखे वाला आदमी के गर्लफ्रेण्ड के लिए टाइम रहता है रे।
पटने का लड़का आज बहुत खुश था। कैम्पस में इंटर करते ही उसने एक हाथ हवा में उछाल कर हैलो जो किया था।
लड़की बोलती जा रही थी, '' अब तुम ऑफिस जाने लगे हो , थोडा कम्प्लीट मैंन बन कर रहो. चलो राय्मंड्स का एक सूट ले लो.''
लड़के
को पटने से आए हुए अभी मुश्किल से महीना भर ही हुआ था कि उसे पता चल गया
कि जिस शर्मा अंकल से उसके घर वाले तक सिर्फ उनके शराब पीने की वजह से नफरत
करते थे। उसी शराब की बोतल को दिल्ली में लड़के बिस्तर पर सोने से पहले
किसी डॉक्टर के सुझाये दवा की तरह पीते हैं। दारू पीना यहां आपके
पोस्ट-मार्डन होने का लाइसेंस की तरह होता है।
सेंट्रल पार्क में बैठे-बैठे दोनों इतने करीब आ गये की उनकी सांसे आपस में टकराने लगी,
कैम्पस
में दोनों के बीच कहां इतनी बातें हो पाती थी। बस एक स्माइल या फिर एक
हैलो-हाई उछाल के दोनों सामने से गुजर जाते थे। लेकिन कॉलेज के बाद अचानक
एक दिन दोनों हौज खास मेट्रो पर टकरा गए। बातों-ही-बातों में पता चला कि
उसका प्लेसमेंट पीटीआई में हुआ है। लड़के ने भी बताया कि उसका सेलेक्शन
एचटी हाउस में हुआ है। फिर तो लड़का रोज उसका मेट्रो पर इंतजार करने लगा ।
राजीव चौक दोनों साथ जाने लगे। कभी लड़की कूद कर लेडीज डब्बे में चली जाती
तो लड़के का चेहरा उतर सा जाता था। धीरे-धीरे लड़के ने उसको अपने सपने में
लाना शुरू कर दिया था। कभी कॉफी हाउस तो कभी सेंट्रल पार्क। हर रोज के ऑफर
से लड़की को कोफ्त होने लगी। एक दिन लड़का मेट्रो पर इतंजार कर रहा
था..एक.दो..चार..पांच मेट्रो उसने छोड़ दी। लेकिन लड़की नहीं आयी। उसका फोन
भी ऑफ जा रहा था।
पटने
का लड़का अभी-अभी संपूर्ण क्रांति से सीधे मुखर्जी नगर टपका था। उसे
बिहारी लड़के घेर के बैठे थे। कोई डीबीसी बनाने की विधि बता रहा था। ‘अरे
बहुत ह्लुक है डीबीसी बनाना। एक्के कुकर में दाल और ओकरे में कटोरा डाल के
भात और आलू रख दिए। हो गया तैयार-डीबीसी’। बाद में पता चला कि डीबीसी मतलब
दाल-भात-चोखा।
कैम्पस
में दोनों के बीच कहां इतनी बातें हो पाती थी। बस एक स्माइल या फिर एक
हैलो-हाई उछाल के दोनों सामने से गुजर जाते थे। लेकिन कॉलेज के बाद अचानक
एक दिन दोनों हौज खास मेट्रो पर टकरा गए। बातों-ही-बातों में पता चला कि
उसका प्लेसमेंट पीटीआई में हुआ है। लड़के ने भी बताया कि उसका सेलेक्शन
एचटी हाउस में हुआ है। फिर तो लड़का रोज उसका मेट्रो पर इंतजार करने लगा ।
राजीव चौक दोनों साथ जाने लगे। कभी लड़की कूद कर लेडीज डब्बे में चली जाती
तो लड़के का चेहरा उतर सा जाता था। धीरे-धीरे लड़के ने उसको अपने सपने में
लाना शुरू कर दिया था। कभी कॉफी हाउस तो कभी सेंट्रल पार्क। हर रोज के ऑफर
से लड़की को कोफ्त होने लगी। एक दिन लड़का मेट्रो पर इतंजार कर रहा
था..एक.दो..चार..पांच मेट्रो उसने छोड़ दी। लेकिन लड़की नहीं आयी। उसका फोन
भी ऑफ जा रहा था।
हौज
खास मेट्रो से मुनिरका तक ही दोनों को साथ जाना था। इतने में 511 बस आके
रूकी। लड़का झट से बस में चढ़ गया। लड़की की नजर बस के डबल खाली सीट
ढुंढ़ने लगी। इतने में लड़की ने लड़के का हाथ पकड़कर झट से नीचे खींच लिया।
लड़का कहता रहा,"अरे। इसी से चलेंगे, हरी वाली है डीटीसी पास है टिकिट
नहीं लेना पड़ेगा"
"इन
लड़कों के साथ यही प्रोब्लेम है- दो दिन हाय-हैलो से थोड़ा ज्यादा बात कर
लो और इन्हें प्यार हो जाता है।"- लड़की अपने दोस्तों से कह रही थी
आखिर कब तक सेनट्रल पार्क, कॉफी हाउस घूमते रहोगे तुम दोनों- सीनियर भैया ने उसे मानो ललकारते हुए कहा।
प्यार, क्रांति की बात करने वालों पर हँस देने का मन होता। उनके लिए एक ही शब्द सूझता- एडोलेसेंट!
और बीता हुआ कल एक घटना मात्र लगता...जिसमें कुछ भी विशेष नहीं। जिसमें विशेष नहीं वो स्टोरी नहीं पत्रकारिता ने इतना तो सीखा ही दिया था
सेन्ट्रल
पार्क में बैठे-बैठे अचानक उसने उसके हाथों को जोर से खींच कर अपने उपर
लेटा लिया। पटने के लड़के ने गुदगुदी और सिहरन को एक साथ महसूस किया। लड़के
को लगा कि कोई फिल्मी सीन सिनेमा के पर्दे से बाहर निकल उसके सामने चलने
लगा हो। पटने के लड़के के परिवार और समाज की अपनी (अभाव की) सांस्कृतिक
पृष्ठभूमि थी, जहां लड़की के साथ बात करना भी अनैतिकता के मोहल्ले में घुस
जाना था, उसके शरीर को छूना साफ पतन।
लड़की उसे समझा रही थी, “प्यार तो विजुअल आर्ट है, यहां वर्डस का कोई महत्व नहीं”।
लड़के को मुख्रर्जी नगर वाले सिनियर भैया की बात याद आ गयी। “अरे सिर्फ बतियाते मत रह जाना, कौन सा शादी करना है, मजे लेकर आना!’’
कैम्पस
में दोनों के बीच कहां इतनी बातें हो पाती थी। बस एक स्माइल या फिर एक
हैलो-हाई उछाल के दोनों सामने से गुजर जाते थे। लेकिन कॉलेज के बाद अचानक
एक दिन दोनों हौज खास मेट्रो पर टकरा गए। बातों-ही-बातों में पता चला कि
उसका प्लेसमेंट पीटीआई में हुआ है। लड़के ने भी बताया कि उसका सेलेक्शन
एचटी हाउस में हुआ है। फिर तो लड़का रोज उसका मेट्रो पर इंतजार करने लगा ।
राजीव चौक दोनों साथ जाने लगे। कभी लड़की कूद कर लेडीज डब्बे में चली जाती
तो लड़के का चेहरा उतर सा जाता था। धीरे-धीरे लड़के ने उसको अपने सपने में
लाना शुरू कर दिया था। कभी कॉफी हाउस तो कभी सेंट्रल पार्क। हर रोज के ऑफर
से लड़की को कोफ्त होने लगी। एक दिन लड़का मेट्रो पर इतंजार कर रहा
था..एक.दो..चार..पांच मेट्रो उसने छोड़ दी। लेकिन लड़की नहीं आयी। उसका फोन
भी ऑफ जा रहा था।
दूसरी तरफ लड़की 615 बस में बैठी सोच रही थी- “अब बस से जाया करुंगी। उफ्फ,ये पटने के लड़के!”
पटने
से आने के बाद पहली बार बिहार से आज एक दोस्त आया।देखते ही हल्ला करने
लगा..''अरे,का का लाया है रे।" फिर उसके जवाब का उत्तर सुने बिना ही गांव
से लाया झोला खोलने लगा। छेना मुरखी,खुरमा और गया का तिलकुट-एक साथ इन सबको
देख कर टूट पड़ा दोस्त पूछता रहा.."अरे और का हाल चाल है तोहार"
लेकिन
वो तो बस खाता रहा..खाता रहा और फिर न जाने कहां से दो बूंद पानी आंखों
में झलकने लगा।दोस्त डिसाइड नहीं कर पाया कि ये खुशी के आंसू हैं या घर न
जाने के गम का।
आपको पता है क्या?
पटने से आने के बाद एक दिन नार्थ कैम्पसिया दोस्त से मिलने चला गया। जब से नार्थ कैम्पस घूम कर आया है।काफी बदला-सा है।फुल-पैन्ट तक तो ठीक मोजे भी Reebok के खरीद लाया है।अब शर्ट को इन करके पहनता है,जिससे फुल-पैन्ट पर BlackBerry लिखा दिखने लगा है।बात-बात पर पैन्ट को उपर के तरफ खींच लेता है,अब मोजे पर लिखा Reebok भी दिखता है। शुक्र है jocky का कुछ नहीं खरीद लाया है।
पटने से आने के बाद खूद को तो नहीं बदल पाया लेकिन उसका मोफलर जरूर बदल गया। जिस मोफलर को अपने कानों के चारों तरफ लपेट कर,खोंस कर पटने में ठंड से बचता फिरता था। वही मोफलर दिल्ली में गले को लपेटे,दाएं-बाएं लटकर स्टॉल बन गया है। क्या पता मोफलर के बदलने में ही उसके बदलने की शुरूआत छिपी हो...-
पटने
का लड़का अपने यमुना पार वाले वन रुम सेट में सोया हुआ है। दोपहर में
लड़की आते ही बरसने लगती है, ''अभी तक खाना नहीं खाया , चाय पी के कब तक
जिंदा रहोगे। चलो केएफसी, चिकेन खाते हैं''।
लड़का करवट बदलते हुए कहता
है,"नरेन्द्र मोदी मत बनो! पता नहीं महीने के 30 तारीख हो रहे हैं और
एटीएम में पैसे पांच को आते हैं"। लड़की चुपचाप चाय बनाने किचेन में चली
जाती है।
(मोदी द्वारा कुपोषण के लिए साइज जीरो को जिम्मेवार ठहराने पर एक दम टटका पेश है-पटने का लड़का)
"इन
बिहारी लड़कों के साथ यही प्रोब्लेम है- दो दिन हाय-हैलो से थोड़ा ज्यादा
बात कर लो और इन्हें प्यार हो जाता है।"- लड़की अपने दोस्तों से कह रही थी
इधर
पटने के लड़के को बिहारी लड़के समझा रहे थे- "एक्के दिन में डिग्री ले
लेना चाहता है रे, थोड़ा टाइम दे, एग्जाम दे। जानता नहीं, गर्ल्स थोड़ा
साइलेन्ट टाइप होती हैं। धीरे-धीरे पटरी पर आएगी"
लड़का झूंझलाता है,"उफ्फ ये बिहारी लड़के! स्साले प्यार को भी संविधान समझते हैं-एकदम स्लो मोशन"।
पटने
का लड़का अपने मुर्खजी नगर वाले कमरे में लेटा-लेटा सोच रहा,"आखिर ये
तैयारी करने वाले लड़के संघी टाइप और इतने कट्टर हिन्दुत्व वाले क्यों होते
हैं"
उसे अपना पटने का वो मोहल्ला याद आने लगा जहां एक बार ईद में
पड़ोस की लड़की ने कटोरी में ईदी के साथ-साथ अपने होंठों के निशान वाली
चिट्ठी भी रख छोड़ा था।
आज भी उसे मुस्लिम लड़की की दी हुई वो ईदी याद आ जाता है।
उफ्फ, ये संघी और कम्यूनल लड़के!
( Pankaj K. Choudhary भैया के स्पेशल आग्रह पर ईदी स्पेशल पेश है-पटने का लड़का)
615
से जनपथ की तरफ से उतर कर वे दोनों सेन्ट्रल पार्क की तरफ जाने लगे। इतने
में लड़की ने चलते-चलते अपने दोनों हाथों से उसके हाथों को जकड़ लिया। पटने
के लड़के को जैसे झटका सा लगा। हाथ छुड़ाते हुए बोला- "माना कि दिल्ली में
ये सब चलता है लेकिन मैं जहां से आया हूं ऐसा नहीं होता। मैं कंफर्ट फील
नहीं करता यार।"
लड़की को नराज होते देख लड़का ठा-ठा कर हंसने लगा।
लड़की नाराज स्वर में बोली- बंद करो ये कॉफी हाउसी हंसी। उफ्फ, ये पटने के लड़के !
पटने
का लड़का अभी हनुमान चलीसा खत्म करके ठाकुर भगवान को भोग लगा ही रहा था कि
लड़की पहुंच गई- "तुम क्या समझते हो कि पूजा करने से तुम्हे मीडिया में
नौकरी मिल जाएगी। सबसे पहले तो ये जमुना पार वाला कमरा शिफ्ट करके साउथ
दिल्ली में कमरा लो। और वहीं बसंत कुंजी पत्रकारों को पकड़ो.दो-चार महीने
आगे-पीछे करोगे तो कहीं सेट कर ही देंगे। "
लड़का कमरे में लटका कैलेंडर देखने लगा,"20 तारीख और जेब में सिर्फ हजार रुपए। कैसे कटेगा इ महीना"
"क्रांति...बदलाव..लेख..कहानी।
इन सबका कोई मतलब नहीं। दरअसल ये तुम्हारे टूल है खुद को महान कहलाने के।
और ये जो मुझे टच न करने की तुम्हारी नैतिकता है उसी महान बनने की
प्रक्रिया है। लेकिन जान लो, तुम दुनिया के नजर में महान हो जाओ..मेरे नजर
में एक पलायनवादी ही रहोगे।"- लड़की कमरे का दरवाजा खोलने लगी
पटने के लड़के ने दौड़ के उसके हाथों को पकड़ लिया।
अब दोनों के लिप लॉक हो चुके थे।
और मामला ठंडा!!
पटने के लड़के ने दौड़ के उसके हाथों को पकड़ लिया।
अब दोनों के लिप लॉक हो चुके थे।
और मामला ठंडा!!
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