हमको ये मत समझाना की प्रदूषण होता है इसलिए पटाखे नहीं चलाने चाहिए. और ये भी मत बताना कि
तुम्हारे नन्हें मुन्ने ने स्कूल से आकर ये कहा है कि पाप पापा मैं पटाखे नहीं जलाऊंगा ये गंदी बात है
और आपने तय कर लिया कि इस बार पटाखे नहीं जलाऊंगा.
तब आपकी क्रांति कहां थी जब अपने बाप से लड़ कर पटाखे छुज़ाया करते थे.
हमारे बाप के पास तब पैसे नहीं होते थे. ऐसी ही एक दिवाली थी जब बाज़ार के बाहर कतार में खाटों पर पटाखे बिछे थे.
और मां ने दस रुपए दिए थे बम खरीदने को क्योंकि घर में दस ही रुपए थे. दस रुपए में तब भी एक पैकेट एटम बम आता था. हमने तब भी बम खरीदा पर रास्ते में आते आते पता नहीं क्यों कैसे और कब मैंने तय कर लिया कि पटाखे नहीं चलाने हैं.
वापस किया और घर चला आय उस दस रुपए के नोट के साथ और अपनी घरघराती जवान होती आवाज़ में घोषणा कर दी घर में. मैं आज के बाद जीवन में कभी भी दीवाली में पटाखे नहीं चलाऊंगा.
इस बात को कई बरस बीत गए. पैसे भी हैं जितना चाहूं पटाखे चला सकता हूं लेकिन नहीं चलाता हूं. पटाखों से डरता भी हूं लेकिन अपने आंसूओं से और बाप की बेचारगी भरी उन बेबस आंखों से भी..
हमने पटाखे नहीं चलाना ऐसे ही तय किया था.
हमारा बच्चा बोलेगा तो उसको पटाखे भी चलाने देंगे..उसकी मर्जी....हमको मत बताइए प्रदूषण होता है. और अपना नन्हा मुन्ना इमानसिपेट हुआ है स्कूल में कि पटाखे नहीं चलाना है।
जे सुशील
जे सुशील
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