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लोक कथाओं के क्रम में आज एक बुन्देली लोककथा
चांद, सूरज और तारे
एक भाई-बहिन थे। भाई का नाम था सूरज और बहिन का चंदा। दोनों अपने बाल-बच्चों के साथ प्रेम पूर्वक रहते थे। सूरज पंचाग्नि तप कर तपस्या करते थे। एक दिन सूरज ने क्रोधित होकर उन बालकों की तरफ अग्नि-किरण फेंकी, जिससे कुछ बच्चे जल गए। उन्हें जलता देखकर चंदा ने सबको अपने गालों के भीतर छिपा लिया।
तपस्या के बाद जब सूरज, तब चंदा ने कहा- "तुमने कितने ही बच्चों को भस्म कर दिया। तुम्हारे जैसा पापी दूसरा न होगा। जाओ, आज से हमारी छाया तक न देख पाओगे और न हम तुम्हारी देखेंगे।"
कहते हैं कि तभी से सूरज अकेला निकलता है और चंदा अपने बच्चों और भतीजों को लेकर आती है। वे तारे होकर उसके आसपास दमकते रहते हैं। तभी से चंदा और सूरज ने एक दूसरे को नहीं देखा।
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