पटना में तकरीबन एक साल बाद |
बहुत दूर जाकर घर लौट आने
जैसा लगता है उनसे मिलना। या फिर सफर के बीच का स्टेशन जैसा, जहां दो-चार मिनट के
लिए सुस्ताने को रुकते हैं हम। हम तीनों की जिन्दगी की अपनी-अपनी अलग-अलग प्रायवेट
डायरी है। खूब सारी घटनाओं, ब्यौरों, लोगों से भरी हुई। जिसमें उतार-चढ़ाव,
सुख-दुख, प्यार-नफरत सबकुछ है। लेकिन हम इन प्रायवेट डायरियों के किसी एक खास
हिस्से को अपनी गोपनियता बचाए रखते हुए एक-दूसरे से बांट भर लेते हैं बस।
हम दोनों की बहुत सी कहानी एक सी है |
नेहा, रिमझिम से मेरी
दोस्ती इन बांटे हुए हिस्सों से कहीं दूर का कुछ है। मिलने पर ढ़ेर सारी हँसी,
एक-दूसरे की टांग खिंचाई, किसी सिनेमा हॉल में जाकर एकाध मूवी, एक बाइक पर ट्रिपल
सवारी करते हुए शहर भ्रमण। कहने को बेहद आम, बेहद साधारण दोस्ती। हमारी दोस्ती में
एक-दूसरे की निजी जिन्दगी में झांकने, एक-दूसरे के दुखों को बांटने का स्कोप बेहद
कम है। है तो बस ढ़ेर-सा हँसी, थोड़ा मजाक, कुछ स्माईली ऑइकॉन :) और सड़कछाप दोस्ती।
दरअसल ये दोस्ती लादी हुई
मिली हमें। कैंपस में हम तीनों में कोई खास बातचीत नहीं थी। मुझे लगता रहा कि ये
लोग विरोधी (राईटिस्ट-सेन्ट्रीक) खेमे के लोग हैं, जो मुझे एक निकम्मा, बिना स्कोप
वाला बेवकूफ टाइप कुछ समझती होंगी (शायद इनके लिए मेरा एक्जिटनेंस ही न हो जैसे)
लेकिन जब हमें एक साथ एक
शहर में पहली नौकरी के लिए पटना भेजा गया तो हम चारों (सरोज भी) ही एक-दूसरे का
सहारा बने। मैं खुश था कि सरोज( कैंपस में मेरा बेस्ट फ्रेंड...जिसके छूटने का दुख
हमेशा रहा) के साथ एक ही शहर में काम करने का मौका मिला। नहीं लगा था कि नेहा,
रिमझिम के साथ प्रोफेशनल रिश्ते से आगे इमोश्नल-सा कुछ जुड़ाव होगा। नेहा हमेशा
डेल्हाइट लगी तो रिमझिम के बारे में सोचता रहा कि शायद ये हमें बेवकूफ समझती होगी।
हम दोनों की एक भी कहानी एक सी नहीं है |
लेकिन पहले असाइनमेंट तक
आते-आते ऐसा हुआ कि हम तीनों ही एक ही असाइनमेंट पर एक साथ गए। वो शुरुआत भर था।
उस सफर का जो पूरे एक साल तक चला, उस सफर का जिसमें एक साल बाद हम लोग भींगी आँखों
के साथ अलग हुए, उस सफर का जिसमें हम लोगों ने खूब मैगी बनाये, खूब मस्ती की, कुछ
फिल्में देखी, कुछ मन-मुटाव किया और अभी तक, आजतक एक साथ खड़े हैं।
पिछले दिनों पटना में था।
नेहा भी थी। रिमझिम भी। हम तीनों थे। हमारे बीच के एक साल का गैप नहीं था। हम फिर
से एक ही बाइक पर ट्रैफिक की धज्जी उड़ाते हुए सिनेमा हॉल की तरफ बढ़ रहे थे,
हमतीनों दुकान में खरीदारी कर रहे थे, हम तीनों मौर्या लोक में जाकर गोलगप्पे खा
रहे थे, हम तीनों ऑफिस के गॉसिप में बिजी थे।
हम तीनों की दोस्ती ऐसी ही
है। बिना किसी को बहुत कुछ कहे एक-दूसरे को जान लेने की। एक-दूसरे के दुख में दुखी
होने से ज्यादा एक-दूसरे के सुख में सुखी होने की। पर्सनली फील करता हूं कि मुझे
इनकी जरुरत है, जहां मैं रोता नहीं, बस हँसाना चाहता हूं क्योंकि मालूम है-
मेरी हर बात पर इनको हँसी
छूट जाती है :)
तुम तीनों की दोस्ती यूं ही बनी रहे... :)
ReplyDeletenayapan hai... jo ki har bar milti hai
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