अपना
शहर तो वही है न। जहां एक जगह जाने के आपको दस रास्ते मालूम हो और आप
कंफ्यूज हो कि किस डगर चलें। फिर उसी जगह जाने के बीच एक की जगह चार
रास्तों को समेट कर पहुंचा जाय। सड़क पर देर रात बाइक चलाते हुए जोर-जोर से
गाने का मन हो और बाइक की स्पीड 70-80-90 लेकिन अचानक से याद आए- ओह,
गाड़ी का मीटर ही खराब है। फिर भी फिक्र नहीं- गिरे भी तो पचास लोग उठाने
चले आयेंगे का विश्वास रहे।
महेन्द्रु- जहां हर रोज दस किलोमीटर का सफर तय करके दिल्ली का अखबार और पुराने मैगजीन लेने जाता था, अशोक राजपथ, गांधी मैदान, फ्रेजर रोड, मौर्या कॉम्पलेक्स होते हुए बोरिंग रोड और पॉलिटेक्निक होते हुए राजा बजार के पीछे से दीघा-कुर्जी निकलते वक्त लगे कि बाइक आप नहीं ये शहर ही चला रहा है।
पटना इस मायने में सच में अपना शहर ही तो है जो मेरे लंबे हो गए बालों के लिए फ्रिकमंद नजर आता है।
साल-दर-साल बदलता जा रहा है लेकिन पटना है कि जड़ है। ये शहर फैल रहा है, बदल नहीं रहा। हर बार होर्डिंग का साइज बढ़ जाता है, मकानों का उपरी तल्ला बढ़ता जाता है लेकिन शहर है कि वहीं का वहीं रहता है। न एक कदम आगे और न एक कदम पीछे।
शहर का मिजाज आज भी चाय दुकानों और लिट्टी चोखे के स्वाद में अटका-सा लगता है।
एक दम ईमानदार, गंवई और अपने तरह का अलग ही सिविक सेंस 'डेवलप' कर चुका शहर है पटना। बड़े-बड़े कॉलेज-यूनिवर्सिटि खुले तो हैं लेकिन अपने चारदिवारी में कैद ही रहते हैं-अजनबी या फिर अलग 'क्लास' का फील लिए।
शहर की जान तो PU और MU में ही अटकी रहती है। बड़े-बड़े प्रायवेट हॉस्पिटल जरुर चमकते दिखते हैं लेकिन PMCH आज भी आस्था का विषय है। इस शहर को नीतीश ने कितना बदला और कितना समय ने ये अभी तय होना बचा रह गया है.....
in sort I m in Patna
महेन्द्रु- जहां हर रोज दस किलोमीटर का सफर तय करके दिल्ली का अखबार और पुराने मैगजीन लेने जाता था, अशोक राजपथ, गांधी मैदान, फ्रेजर रोड, मौर्या कॉम्पलेक्स होते हुए बोरिंग रोड और पॉलिटेक्निक होते हुए राजा बजार के पीछे से दीघा-कुर्जी निकलते वक्त लगे कि बाइक आप नहीं ये शहर ही चला रहा है।
पटना इस मायने में सच में अपना शहर ही तो है जो मेरे लंबे हो गए बालों के लिए फ्रिकमंद नजर आता है।
साल-दर-साल बदलता जा रहा है लेकिन पटना है कि जड़ है। ये शहर फैल रहा है, बदल नहीं रहा। हर बार होर्डिंग का साइज बढ़ जाता है, मकानों का उपरी तल्ला बढ़ता जाता है लेकिन शहर है कि वहीं का वहीं रहता है। न एक कदम आगे और न एक कदम पीछे।
शहर का मिजाज आज भी चाय दुकानों और लिट्टी चोखे के स्वाद में अटका-सा लगता है।
एक दम ईमानदार, गंवई और अपने तरह का अलग ही सिविक सेंस 'डेवलप' कर चुका शहर है पटना। बड़े-बड़े कॉलेज-यूनिवर्सिटि खुले तो हैं लेकिन अपने चारदिवारी में कैद ही रहते हैं-अजनबी या फिर अलग 'क्लास' का फील लिए।
शहर की जान तो PU और MU में ही अटकी रहती है। बड़े-बड़े प्रायवेट हॉस्पिटल जरुर चमकते दिखते हैं लेकिन PMCH आज भी आस्था का विषय है। इस शहर को नीतीश ने कितना बदला और कितना समय ने ये अभी तय होना बचा रह गया है.....
in sort I m in Patna
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