Friday, September 19, 2014

बचपन का पूरा कैनवास याद आता है..

Credit-  Hajin Bae

रात का सन्नाटा चारों तरफ पसर गया है। मैंने अपने कमरे की खिड़की अच्छे से बंद कर ली है। थोड़ी देर बालकनी में खड़ा होने गया लेकिन खड़ा न हो पाया। दूर तक मौन पसरा है। खिड़की के बाहर झांकने की हिम्मत करता हूं। झिंगुर की आवाज, सन्नाटा और अँधेरे में लिपटा खाली खेत है जो पहाड़ों के किनारे जाकर खत्म होता है। घर के बाहर बिना स्ट्रीट लाइट वाली सड़क चुपचाप झपकी ले रही है। बीच-बीच में किसी मोटरसाईकिल की पीली रौशनी से उसकी नींद टूट जाती है, लेकिन सर्रररर.. से बाइक के गुजरने के बाद कुछ देर अलसायी सी ताकती है और फिर उंघने लगती है।
मैं सोना चाहता हूं लेकिन दिल्ली की आदत है कि आधी रात से पहले नींद ही नहीं आती। एक को फोन कर रहा हूं- देर तक फोन रिंग होता है, उधर से आंसर नहीं मिलता। मैं घड़ी देखता हूं- अभी सिर्फ नौ बजे हैं। रात काफी लंबी है।

मुझे अपना गांव याद आ रहा है, अपना बचपन। जाड़े के समय शाम के 6 बजे सोना याद आ रहा है, लालटेन की पीली रौशनी याद आ रही है, नोटबुक के पन्नों पर पड़ने वाली पीली रौशनी से कागज का सुनहला हो गया रंग याद आता है, उसी रौशनी में बैठे-बैठे पड़ोस के लड़के से ज्यादा तेज आवाज में पढ़ना याद आता है, रात को आंगन के उसपार बाथरुम जाने में पस्त हिम्मत याद आती है, आंगन, आंगन भी याद आता है। वहां खाट डाले बसबिट्टी (बांस का झुंड) और तार के पेड़ ताकना याद आता है, बांसों के पेड़ों का भूत बनना याद आता है। जाड़े की वो रात याद आती है।

जाड़े की वही रात नहीं कई रात याद आती है। नानी गांव याद आता है, घूरा के लिये इकट्ठा किया जलावन याद आता है, पटना में बिजली का हिटर याद आता है, हिटर जलाने के बाद आया बिजली बिल याद आता है, दस्ताने के लिये लालायित हाथ याद आता है, बंदर टोपी से किया मुखालफत याद आता है, मफलर की चाहत भी। रिश्तेदारों का उतरन वो ढीला हो गया जैकेट याद आता है।

गांव के पुलिस चौकी वाले सिपाही जी का वो दोस्त याद आता है। सोलर लाइट में जिसके साथ पढ़ते रहे। जो दो-चार महीने के लिये बेस्ट फ्रेंड हो गया था। पढ़ने के समय खेलते हुए पकड़ाने पर हुई उसकी पिटाई, उसके सूजे गाल याद आते हैं।


माँ का स्वेटर बुनना याद आता है। स्वेटर का नाप भी। किराये का वो पटना वाला डेरा याद आता है। धूप में चटाई डाल किस्सा-कहानी-किताब की पढ़ाई याद आती है, जाड़े की अलसायी सुबह और शाम का बैडमिंटन खेलना याद आता है।

बचपन का पूरा कैनवास याद आता है..

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बेकाबू

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