जिन्दगी भर हम जवाब खोजते रहते हैं. या फिर एक बना बनाया जवाब हमें थमा दिया जाता है.
हमारे हर व्यवहार के लिये. हम कैसे प्यार करें, हम कैसे काम करें, हम कैसे रिश्ते निभायें, हम कैसे दोस्त बनाये. सबकुछ का एक फ्रेमवर्क है जो समाज औऱ सिस्टम मिलकर तय करते हैं.
लेकिन क्या जवाब खोजने से ज्यादा जरुरी नहीं कि हम सवाल की तलाश करें. सवालों के पीछे भागें. सवालों के लिये मरे. सवालों के लिये जीने की कोशिश करें.
सवाल खोजते रहें, वो सवाल जो रात ठीक तीन बजे जगकर पास चले आते हैं. वो सवाल जो चुपचाप अकेले रहने पर पास आकर बैठ जाते हैं. वो सवाल जिन्हें हम जानते हैं, जिनसे होकर गुजरते हैं. लेकिन उनको छू नहीं पाते. उन तक पहुंच नहीं पाते. फिर वो धूंधले होते चलते हैं. चले जाते हैं. और हम हैं कि चुपचाप पहले से थमा दिये गए जवाबों के साथ इस दुनिया में भटकते फिरते हैं.