Tuesday, December 27, 2011

आम आदमी

मैं आंखे बंद किए दौड़ लगाता हूँ


जे.एन.यू के सुनसान सड़कों पर..


मैं तेज दौड़ लगाता हूँ
और
तेज...


क्योंकि


मैं भूलना चाहता हूँ


जिंदगी के दौड़ में पीछे छूटने के गम को


मैं भूलना चाहता हूं


क्रान्ति न कर पाने के उस बेबसी को


क्योंकि 


मुझे नहीं मिलते किसी यूनिवर्सिटी में पढ़ाने के लाख रूपये-प्रतिमाह


मेरे पास नहीं आते किसी बुकर प्राइज विनर किताब की रॉयल्टी


मैं नहीं कर सकता क्रान्ति की बातें 


क्योंकि 


मैं जानता हूं


बिना रोटी के रात गुजारना क्या होता है...:(


मैं नहीं कर सकता दूनिया बदलने की बातें


क्योंकि 


मैंने नहीं बितायी है
स्कूल की गर्मी की छूट्टियां-किसी हिल स्टेशन पर जाकर


मैं नहीं कोस सकता इस पूंजीवाद को


क्योंकि 


हर शाम मुझे ले जाना होता है
एक झोला सब्जी,माँ के लिए दवा और बच्चों के लिए कागज-कलम
घर में।


और अपनी इसी बेबसी में
जब सर फटा जा रहा है


मैं 
आंखे बंद किए
दौड़ा
जा रहा हूँ


बेतहाशा दौड़ कर मैं इस 
बे

सी 
को भूलाना चाहता हूँ।

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