बचपन में घर में पप्पु नाम का लड़का काम
करने आता था।उसके पिता रेहड़ी वाले थे।घर में पप्पु दिन भर काम करता था और रात में
हमलोगों के साथ पढ़ने भी बैठता था।लेकिन पप्पु कभी स्कूल नहीं जा पाया।हाँ,हमारे
साथ पढ़ते हुए वह साक्षर जरूर हो गया।देश में न जाने ऐसे कितने पप्पु हैं,जो स्कूल
नहीं जा पाते।पप्पु जैसे बच्चें स्कूल जा पाएं इस उद्देश्य से सरकार ने 2010 में
शिक्षा का अघिकार कानून लाया।इस कानून के तहत निजी स्कूलों में भी 25 प्रतिशत गरीब
बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने का प्रावधान किया गया।
लेकिन लगता है पप्पु जैसों
का स्कूल जा पाना फिलहाल असंभव ही है।क्योंकि इस
कानून के पालन में कई अड़चने लगायी जा रही है।निजी स्कूल फिलहाल इस कानून को
मानने के मुड में नहीं नजर आ रही है। हाल ही में दिल्ली के मान्यता प्राप्त और गैर-
मान्यता प्राप्त लगभग चार हजार स्कूलों ने इस कानून को मानने से साफ इनकार कर
दिया है।कुछ दिन पहले पटना के निजी स्कूलों ने भी इस कानून के खिलाफ आवाज
उठायी और यहां तक की वहां के प्रमुख बारह स्कूल हड़ताल पर भी गये।इस तरह देश
भर से ऐसी ही विरोध की खबरें आ रही हैं।
कानून के पालन में कई अड़चने लगायी जा रही है।निजी स्कूल फिलहाल इस कानून को
मानने के मुड में नहीं नजर आ रही है। हाल ही में दिल्ली के मान्यता प्राप्त और गैर-
मान्यता प्राप्त लगभग चार हजार स्कूलों ने इस कानून को मानने से साफ इनकार कर
दिया है।कुछ दिन पहले पटना के निजी स्कूलों ने भी इस कानून के खिलाफ आवाज
उठायी और यहां तक की वहां के प्रमुख बारह स्कूल हड़ताल पर भी गये।इस तरह देश
भर से ऐसी ही विरोध की खबरें आ रही हैं।
यदि आप इन निजी स्कूलों के
विरोध के पीछे के तर्क को सुनेंगे तो हैरान रह जायेंगे।
इन निजी स्कूलों का कहना है कि हम गरीबों के बच्चों को अपने यहां दाखिला नहीं दे
सकते क्योंकि इससे हमारे स्टैंण्डर्ड में गिरावट आने की संभावना है।यह तर्क अपने आप
में वाहियात ही नहीं बल्कि उतना ही अमानवीय भी है।इस एक तर्क से निजी हाथों द्वारा
संचालित स्कूलों का एक तरह का सामंती चेहरा ही हमारे सामने आता है।इन स्कूलों का
यह भी तर्क है कि यदि वो गरीब बच्चों को अपने यहां दाखिला देते हैं तो समाज के
उच्च वर्ग के लोग अपने बच्चे को हमारे यहां नहीं आने देंगे।यदि इस तर्क में थोड़ी सी भी
सच्चाई है तो इससे हमारे कथित कुलिन वर्ग का चेहरा सामने आता है।
इन निजी स्कूलों का कहना है कि हम गरीबों के बच्चों को अपने यहां दाखिला नहीं दे
सकते क्योंकि इससे हमारे स्टैंण्डर्ड में गिरावट आने की संभावना है।यह तर्क अपने आप
में वाहियात ही नहीं बल्कि उतना ही अमानवीय भी है।इस एक तर्क से निजी हाथों द्वारा
संचालित स्कूलों का एक तरह का सामंती चेहरा ही हमारे सामने आता है।इन स्कूलों का
यह भी तर्क है कि यदि वो गरीब बच्चों को अपने यहां दाखिला देते हैं तो समाज के
उच्च वर्ग के लोग अपने बच्चे को हमारे यहां नहीं आने देंगे।यदि इस तर्क में थोड़ी सी भी
सच्चाई है तो इससे हमारे कथित कुलिन वर्ग का चेहरा सामने आता है।
कुछ अभिवावक से बात करने पर
और भी हैरान करने वाली बात सामने आयी।इनका
कहना था कि यदि इनके बच्चे गरीब बच्चों के साथ पढ़ेगें तो वो चोरी करना,गाली
बोलना सीख जायेंगे।यानि हमारा कुलिन तबका यह मान कर चलता है कि गरीब बच्चें
चोर होते हैं,गाली बकने वाले होते हैं।यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।हमारे व्यवस्था में
गरीबों को जिस तरह से हाशिये पर धकेला जा रहा है यह उसी का हिस्सा-मात्र है।
कहना था कि यदि इनके बच्चे गरीब बच्चों के साथ पढ़ेगें तो वो चोरी करना,गाली
बोलना सीख जायेंगे।यानि हमारा कुलिन तबका यह मान कर चलता है कि गरीब बच्चें
चोर होते हैं,गाली बकने वाले होते हैं।यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।हमारे व्यवस्था में
गरीबों को जिस तरह से हाशिये पर धकेला जा रहा है यह उसी का हिस्सा-मात्र है।
निजी स्कूल वालों का यह भी
तर्क है कि यदि वो इन गरीब बच्चों को अमीर घरों से
आने वाले बच्चों के साथ बैठाती है तो इन बच्चों में हीन भावना घर कर जायेगा,जिसका
परिणाम इन गरीब बच्चों के हित में न होगा।यह गरीब-हितौषी होने का दिखावा मात्र है।
कुछ स्कूल गरीब बच्चों के लिए दोपहर के बाद स्पेशल कक्षा के आयोजन की बात करती
है।लेकिन इसे नहीं स्वीकारा जा सकता है।
आने वाले बच्चों के साथ बैठाती है तो इन बच्चों में हीन भावना घर कर जायेगा,जिसका
परिणाम इन गरीब बच्चों के हित में न होगा।यह गरीब-हितौषी होने का दिखावा मात्र है।
कुछ स्कूल गरीब बच्चों के लिए दोपहर के बाद स्पेशल कक्षा के आयोजन की बात करती
है।लेकिन इसे नहीं स्वीकारा जा सकता है।
दरअसल, इस सरकारी कानून के
विरोध का सबसे बड़ा कारण है इन निजी स्कूलों का
शक्तिशाली हाथों द्वारा परिचालन।जिन्हें स्कूल के नाम पर सस्ती जमीन लेने में,सस्ती
बिजली लेने में,अन्य करों में छूट से तो प्यार है लेकिन सरकार के बनाये कानून को
मानने के लिए ये तैयार नहीं।
शक्तिशाली हाथों द्वारा परिचालन।जिन्हें स्कूल के नाम पर सस्ती जमीन लेने में,सस्ती
बिजली लेने में,अन्य करों में छूट से तो प्यार है लेकिन सरकार के बनाये कानून को
मानने के लिए ये तैयार नहीं।
सरकार भी शिक्षा में निजीकरण
को बढ़ावा दे रही है और सरकारी स्कूलों की हालत
बद-से-बदतर करती जा रही है।आज भी बारह से चौदह साल की लड़कियाँ सिर्फ शौचालय
के अभाव में स्कूलों को छोड़ने को विवश हो रही है।ऐसे में सरकार आम लोगों के शिक्षा
के प्रति कितनी जागरूक है इस पर संदेह ही लगता है।देश में एक मजबूत निजी शिक्षा
के हिमायती-लॉबी भी मजबूत है,जो सरकार पर दबाव डाल रही है। इसलिए सरकार भी
इस मामले में दिलचस्पी नहीं दिखा रही है।
बद-से-बदतर करती जा रही है।आज भी बारह से चौदह साल की लड़कियाँ सिर्फ शौचालय
के अभाव में स्कूलों को छोड़ने को विवश हो रही है।ऐसे में सरकार आम लोगों के शिक्षा
के प्रति कितनी जागरूक है इस पर संदेह ही लगता है।देश में एक मजबूत निजी शिक्षा
के हिमायती-लॉबी भी मजबूत है,जो सरकार पर दबाव डाल रही है। इसलिए सरकार भी
इस मामले में दिलचस्पी नहीं दिखा रही है।
आज जरूरत है कि सरकार शिक्षा
के अधिकार कानून को
कठोरता से लागू करवाये।क्योंकि लाखों पप्पु स्कूल जाने के
लिए अपना झोला तैयार कर रहे हैं।
कठोरता से लागू करवाये।क्योंकि लाखों पप्पु स्कूल जाने के
लिए अपना झोला तैयार कर रहे हैं।
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