पटने का लड़का,प्लेसमेंट,गर्लफ्रेण्ड और क्रान्ति। पार्ट3
‘अरे, उ फ्रेण्ड रिक्वेस्ट एकसेप्ट कर ली रे’, सबसे पहले अनिल चिल्ला के बोला। बीच में
सासाराम के मनीष ने बात काटते हुए कहा ‘तो तु का समझता है राकेश बुरबक है का? इ भी पटना कॉलेज से
पढ़ कर आया है।’ राकेश इन लोगों की बात तो सुन रहा था। लेकिन बोल कुछ नहीं रहा था।
अभी तो वो अपने ही ख्यालों में खोया था। मानों कित्ता बड़ा इ अचीवमेंट हो गया हो
उसके लाइफ का। तभी बेगुसराय का विवेक कह बैठा, ‘भाग स्साला। फ्रेंड
रिक्वेस्ट एकसेप्ट करने से का होता है रे। उ इलीट क्लास की है एकरा घासों नहीं
डालेगी।’
इलीट,अंग्रेजीदां,ग्लैमरस,जमीन से कटे हुए लोग,मैकडी,पिज्जा-बर्गर टाइप,यो-यो
जेनरेशन ये कुछ शब्द हैं,जो बिहारी लड़के दिल्ली वालों के लिए इस्तेमाल करते हैं। ये
अलग बात है कि हर बिहारी लड़के के मन में ऐसा ही कुछ बनने की दबी इच्छा होती।
लेकिन हर महीने घर से आने वाले पैसे उन्हें इसकी इजाजत नहीं देते हैं।इसी तरह डाउन
मार्केट,चीप,गांव से आए हुए जैसे शब्द दिल्ली वाले बिहारी लड़कों के सम्मान में
इस्तेमाल करते हैं।
तो रश्मि का फ्रेंड
रिक्वेस्ट एकसेप्ट करना एक बड़ी घटना बन चुकी थी,जिसपर हर बिहारी लड़का अपनी राय
देना चाह रहा था। उनमें से कई ने तो आज ही रश्मि को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजने का
मन-ही-मन विचार भी कर लिया था। कोई ये नहीं समझ रहा था कि लड़की का रिक्वेस्ट
एकसेप्ट करना एक सामान्य घटना होती है,जो एक क्लास में पढ़ने की वजह से घटित हुआ
है।
राकेश अब क्लास में रश्मि की
तरफ से विशेष सावधानी बरतने लगा है। अगर वो क्लास में रहती है तो वो हर सवाल के
जवाब देने की कोशिश करता है। एक दिन रश्मि के ऑनलाइन मिलने पर राकेश उसको मैसेज
भेजता है ‘हाई’-
उधर से कोई रिप्लाई नहीं आता
दूसरे दिन फेसबुक खोलने पर राकेश के इनबॉक्स में उसका मैसेज
‘हे,सॉरी। आई एम लेट विकॉज विजी इन अनदर वर्क।हाउ आर यू’
राकेश,
‘इट्स ओके.हाउज यू’
रश्मि,
‘फाइन।सी यू इन कैम्पसJ’
राकेश,
‘J’
लेकिन क्लास में उन दोनों के बीच सिर्फ हाई-हैलो ही हुआ। हालाकिं अब
राकेश के कमरे पर रोज उसकी मदद के लिए बिहारी लड़के जुटने लगे थे। अनिल का जोर
अंग्रेजी की तरफ होता। ‘देखो। अंग्रेजी सीख लो। तभीये बात बनेगी’। विवेक कहता ‘रे,अंग्रेजी सीखे से लड़की पटती तो आज
जेतना रैपीडेक्स वाला है सब अप्पन साथ लड़की घूमाता।’ लड़की के साथ घूमने या फिर उसके साथ ऑटो
तक चलने, चाहे बुक फेयर जाने जैसे किसी भी काम को बिहारी लड़के ‘लड़की घूमाने’ का ही नाम देते
हैं। इस लड़की घूमाने के वक्त सबसे ज्यादा दुविधा होती। एक तरफ लड़की तो दूसरी तरफ
घर से आए पैसे,प्लेसमेंट और पढ़ाई-लिखायी। इन सबके बीच लड़का खुद घूम कर रह जाता
है। हर के पास अपना सजेशन होता, डेली प्रगति का आकलन भी। साथ में राकेश के पैसे का
चाय और सिगरेट खुब उड़ाए जा रहे थे।
बात बनने की बात तो दूर थी। लेकिन इतना जरूर हुआ था कि बिहरी लड़कों
को शाम में बहस के लिए अमेरीका,उदारीकरण और पूंजीवाद से इतर एक रोमांचक मुद्दा मिल
गया था। इधर राकेश के महीने का बजट बिगड़ता जा रहा था।
(कहानी का रफ ड्राफ्ट...जारी)
interesting.......
ReplyDeletelikhte raho
क्लाईमेक्स का इंतजार है दोस्त.....
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