कब लौटेगा
नदी के उस पार गया
आदमी
अब तो मां की आंखे
सूख गयी हैं,
पिता छोड़ चुके हैं
आशा,
कब लौटेगा...
प्रियतमा की फटी
साड़ी आंसु से भींग गई है,
अब नहीं नाचती अनमनी
होकर उंगलियां,
कब लौटेगा नदी के उस
पार गया आदमी...
बेटे पापा कहना भूल
गए हैं,
बेटी पायल पहनना भूल
गई है
कब लौटेगा नदी के
उसपार गया आदमी..
भींगी आंखे कर रही
पुकार
आ, आ ! अब लौट आ नदी के उस पार गया आदमी...
कब लौटेगा नदी के उस
पार गया आदमी।
(नोटः- इस कविता को
मैंने दसवीं में लिखा था, डायरी के पन्ने पर 6.10.05 दर्ज है। आज भी डायरी को
संभाले हूं। हाल में जब मैं इसको पढ़ रहा था तो लगा कि ये सब मैंने उस उम्र में
कैसे लिख दि, लगता नहीं कि इन नन्हें हाथों में इतनी कल्पनाशीलता रही होगी। इस
कविता के साथ एक नोट भी है उसे भी लिख दे रहा हूं- this poem is dedicate a family. वो family जिसका
बेटा, पति, पिता कहीं दूर निकला था और आजतक वापस नहीं लौटा..ऐसे कई परिवार गांवों
में मिल जाते हैं। उनके दर्द को कागज पर उकेरने का एक छोटा सा प्रयास.. )
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