Wednesday, September 5, 2012

हाईस्कूलिया प्रेम कविता पार्ट1

खूबसूरत हो तुम,मनमोहक हो तुम!

खूबसूरत हो तुम,मनमोहक हो तुम!



जाड़े में धूप की पहली किरण,
ओस की बूंदों का ठंडापन,
नव खिल हुए फूलों की खुशबु,
कह रही तितलियां मेरे कानों में

इन सबसे ज्यादा
खूबसूरत हो तुम,
मनमोहक हो तुम!

बादल रहित गगन,
सागर में डूबता हुआ
सूर्य मग्न,
पहली बरसात की पहली बूँद
इन सबसे
खूबसूरत हो तुम,
मनमोहक हो तुम!

पहले प्यार का एहसास
स्वर्णिम कल का आस
पुरानों की पवित्रता
कुरानों की शराफत
इन सबसे
खूबसूरत हो तुम,
मनमोहक हो तुम!
सुर्योदय के
उल्लास भरे दृश्य,
सुर्यास्त के
वियोग भरे वो दृश्य,
पूर्णिमा का चाँद,
चाँदनी रातों का शीतलपन

दूर से आती कोयल की
कूँ-कूँ

नजदीक से आती गनगनाहट
इन सबसे
खूबसूरत हो तुम,
मनमोहक हो तुम!

Note;- कविता का रचनाकाल शायद 2004-05 के बीच का कोई समय है। दरअसल आजकल हाईस्कूल के समय की डायरी कहीं से मिल गई है, उसी को पढ़ रहा हूं। अब तो ठीक से याद भी नहीं कि किसके लिए ये लिखा था मैंने(झूठ बोल रहा हूं- सब याद है। कौन थी, कैसी थी..हीहीही। पता नहीं अब कहाँ है?)

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