Wednesday, September 5, 2012

हाईस्कूलिया प्रेम कविता पार्ट 2




कभी ये एहसास
जागता है दिल में,

कोई अपना बसता है
दिल में,

कोई अपना लगता है
दिल को

दिल चाहता है किसी को...
कुछ-कुछ होता है
दिल में,
हर चीज अच्छी नजर आती हैं
हर आदतें बदल जाती हैं
लेकिन
वक्त की आँधी का क्या करें...

जो किनारा
आने से पहले ही
सबकुछ बहा ले जाती है
और अक्सर
खाली सपनों की तरह
अधूरा रह जाता है
जीवन का पहला प्रेम!

Note;- हाईस्कूल में ही कवि दृष्टि पा गया लगता हूं। तभी तो वहीं प्रेम भी किया और साथ घोषणा भी कि ये प्रेम दूर तक चलने वाला नहीं है। हीहीही..फिलहाल डायरी के पन्ने पलटता जा रहा हूं और खुद पर हंसता जा रहा हूं। खुद पर हँसने के मौके कम ही मिलते हैं न!

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