Thursday, March 27, 2014

इलेक्शन वाया रोड डायरी से कुछ फूटनोट्स




रोड डायरी से कुछ फूटनोट्स

पिछले 15 दिनों में करीब चार राज्यों में जाने का मौका मिला। फिलहाल पांचवे राज्य मध्यप्रदेश में बैठ कर उन अनुभवों को समेटने की कोशिश कर रहा हूं जो गांव-गांव, शहर-दर-शहर भटकने के बाद समझा है। इन अनुभवों में मैंने ज्यादा से ज्यादा चुनावी समीकरणों को समझने की कोशिश की है, सैकड़ों लोगों से बात करने की कोशिश भी। संयोग से ये अनुभव हाइवे पर चाय बेचने वाले ढाबे, तारी बेचने वाले पासीखाने से लेकर हवाई जहाज में सफर कर रहे लोगों तक फैल गया है।
चुनाव 2014 मेरे लिए खास है। पांच साल पहले हुए चुनाव के समय मैं ग्रेजुएशन में था। कॉलेज में अजीब-अजीब सपने देखने में लगा था। चुनाव को इतने करीब से देखने का मौका नहीं मिल पाया। ये चुनाव कई मायनों में खास है। अब लड़ाई कांग्रेस-बीजेपी के साथ-साथ आप पार्टी के हाथ में चली गयी है। ढ़ेर सारे लोगों से बात करने के बाद मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ये चुनाव सांप्रदायिकता के मुद्दे पर ही लड़ी जा रही है। लोगों के बीच धर्म को लेकर बेहद गहरी खाई पैदा करने की कोशिश की जा रही है। नरेन्द्र मोदी जैसे कम्यूनल फेस चाहे लाख विकास के झूठे नारे उछाल लें लेकिन असली कार्ड वो हिन्दुत्व वाला ही प्ले करने की कोशिश में लगे हैं।
मेरे यात्रा की शुरुआत हुई- बिहार से। कहते हैं दिल्ली का रास्ता बिहार-यूपी से होकर ही जाता है। शायद यही वजह है कि राहुल-केजरीवाल-मोदी तीनों बिहार-यूपी से चुनावी मैदान में कूद कर वैतरणी पार करना चाह रहे हैं। करीब-करीब चार सौ किलोमीटर बाइक से बिहार की सड़कों पर दौड़ने के बाद कुछ चीजें बहुत क्लियर हुई हैं, जो शायद ही मीडिया मुझे कभी बता पाए।
मोदी की लहर बिहार में है तो सही लेकिन सिर्फ और सिर्फ अपर कास्ट तबके में। रामविलास पासवान की पार्टी के एक नेता हैं, होदा साहब। दरभंगा के रहने वाले। पटना में मिल गए। कहते हैं- नीतीश का वोट बैंक साइलेंट है। हवा-अफवाह तो अपर कास्ट वाले बनाते हैं। वैशाली के एक तारी खाने में जब देवेन्द्र दास मुझे समझाते हैं कि- हमलोग पिछड़ा जात वाले सबको बोलते हैं-हां, देंगे वोट तुम्हीं को। लेकिन वहां जाकर वोट तो नीतीश को ही देंगे। तो मुझे वहां होदा साहब की साइलेंट वोटबैंक वाली बात याद आती है। नीतीश को हल्के में ले रहे चुनावी मीडिया विश्लेषक शायद उसके इस साइलेंट वोट बैंक को इग्नोर करने की गलती कर रहे हैं।
कोई भी पार्टी संगठन हो अपने आम कार्यकर्ताओं के भावनाओं के साथ खेलने का काम ही करते हैं। होदा साहब धर्म से मुस्लिम हैं। रामविलास पासवान के मोदी के साथ जाने से दुखी हैं लेकिन पार्टी नहीं छोड़ना चाहते- आठ साल का मोह है-ऐसे नहीं छूट पायेगा पार्टी हमसे। बाद में रामविलास की मजबूरी समझाने लगते हैं। मैं उनकी मजबूरी समझने लगता हूं।
पटना में है-दरोगा राय पथ। बिहार के माननीय विधायकों का रिहाईशी इलाका। वहां पप्पु जी हैं। जितनी मेरी होश संभालने की उम्र है उतने साल से उन्हें वहां चाय बेचते देख रहे हूं। मोदी के बारे में पूछने पर  हंसते हैं- कहते हैं, तुम तो ललका झंडा से थे, मोदी के बारे में काहे पूछ रहे हो। हंसी के बाद अचनाक गंभीर हो जाते हैं- मोदी आया था यहां रैली करने। सुनने में आता है- 50 करोड़ रुपया खर्च हुआ उसके रैली में। भर रैली अपने को चाय बेचने वाला बताता रहा। कभियो नहीं जान पायेगा इ मोदी कि चाय बेचने वाला का दर्द का होता है। पचास करोड़ के मंच पर चढ़ कर उ चाय दुकानदार का दर्द बेच रहा है। चीनी मंहगा हो गया, चायपत्ती भी। दूध आठ रुपये किलो से 40 रुपये किलो मिलने लगा। और चाय का दाम वहीं का वहीं रह गया- चार रुपया-पांच रुपया। कभियो सुने हैं मोदी को इ सब बोलते। उसको तो हमरा दर्द बेचने से मतलब है, हमारे दर्द से नहीं

बिहार के नेशनल हाइवे 28 पर सुबह के सात बजे।  समस्तीपुर के आसपास का इलाका। एक ढाबेनुमा चाय दुकान पर हम अपनी बाइक रोकते हैं। एक अधेड़ उम्र के बाबा। किसका हवा है- पूछते ही बोलते हैं- मोदी का। काहे? ‘नीतीश सिर्फ गरीबों ( दलितों) के लिए काम किया है। हम किसानों को गरीब लोग भाव देना बंद कर दिया है। खेती के लिए मजदूर तक नहीं मिलता है। एक चाय वाला गरीबों की भलाई पर गुस्सा हो रहा था। ये अद्भूत सीन था मेरे लिए। मैं न चाहते हुए भी चलते-चलते उनसे उनकी जाति पूछ बैठता हूं- भूमिहार।
मार्क्स का क्लास स्ट्रगल इस देश में अभी बहुत दूर की चीज है- बाइक स्टार्ट करते-करते मैं अपने साथ वाले से कहता हूं।
आगे हाइवे 28 से कटकर पटना के लिए स्टेट हाइवे की सड़क है। हम अपनी बाइक उस तरफ मोड़ देते हैं- हाजीपुर से पहले एक गांव है हरपुर। हमारी बाइक एक पासीखाने में रुकती है। किसकी हवा है’?
काहे बतायें किसकी हवा है। भोट-भाट (वोट) की बात पासीखाने में बैठकर नहीं की जाती। सवाल थोड़ा जल्दी पूछ लिया लेकिन कुछ देर गांव-जहान की बात करते-करते सभी वोट और राजनीति की बात ही करने लगते हैं।
पासीखाने का मालिक पासवान जाति का है। हाजीपुर रामविलास पासवान का गढ़। लेकिन पासीखाने का पासवान मालिक इस बार रामविलसा को वोट नहीं करेगा। उ पासवान के लिए कुच्छो नहीं करता है, हर बार जीत कर शादी कर लेता है। नीतीश रेडियो दिया है, सुरक्षा दिया है, सड़क दिया है। अस्पताल टाइम से खुलता है। हां, डॉक्टर रोज नहीं बैठता हैतो क्या नीतीश रोज आएगा चेंकिग करने- एक उसकी बात को काटता है। बांकि नयका लड़का में मोदी का हवा है- सुरज दास बोलता है तो बीच में ही बात को काट कर एक बूढ़ा कहता है- इ नयका सब अगड़ा जाति का आत्याचार नहीं देखा है। इसलिए कमल को भोट देने का बात करता है। कमल को भोट देना मतलब उपरका जात के चूतड़ सहलाना। या तो नीतीश और न तो लालू। तीसरा किसी को वोट नहीं- न कांग्रेस, न बीजेपी
अगला पड़ाव- बिहार की राजधानी पटना। फिर एक चाय वाला। मोदी के चाय ब्रांड ने मीडिया वालों से लेकर चुनावी विश्लेषकों तक में चाय वाले की डिमांड बढ़ायी है। मोदी छाप का टीशर्ट पहने- राजेश। मोदी को वोट करेंगे?’ नहीं, केजरीवाल को। काहे कि सब नेतवा चोर हो गया है-मोदी-नीतीश-लालू एक्के थैली के चट्टा-बट्टा है
तो फिर इ मोदी वाला टीशर्ट काहे पहने हैं?’  उ तो रैली में गए थे न सर। वहीं मिला था। टीशर्ट पहनने से भोट थोड़े न खरीद लिया है हमरा
मैं पटना से दिल्ली जाने वाले एयर इंडिया की फ्लाईट में बैठा हूं। अमूमन हवाई जहाज में मुझे कोफ्त होती है कि कोई एक-दूसरे से बात क्यों नहीं करता। लेकिन मैं हूं कि अपनी लंपटई से बाज आने का मन ही नहीं होता। साथ वाले से पूछता हूं- दिल्ली जा रहे हैं’?  नहीं, सउदी  गोपालगंज से सउदी की उड़ान। नीतीश को वोट करेंगे? ‘ नहीं। कुच्छो नहीं किया नीतीशवा। फिर?  लालू। अबकी लालू को भोट जाएगा। आखिर कब तक उड़-उड़ कर कभी दिल्ली तो कभी सउदी जाते रहेंगे। हमको भी घर पर रहना है, अपना गांव, अपना परिवार के साथ

खामोशी। हमारे बीच दिल्ली तक खामोशी है। जाते-जाते बस चलता हूं कह सका। दरअसल ज्यादातर बिहारी विस्थापित हैं। हम बिहारियों के विस्थापन को कई दर्ज नहीं करता। हम आपस में ही बांटते हैं- हमें विकास के लंबे-लंबे वादे नहीं चाहिए। एक अदद नौकरी चाहिए- अपने घर, गांव में। जिससे ठीकठाक गुजर बसर हो सके हमारा। खामोशी।
देश की राजधानी। दिल्ली के ऑटोवालों का सुर बदला-बदला सा है। जो कल तक केजरीवाल-केजरीवाल गा रहे थे। आज मोदी-मोदी कह रहे हैं। केजरीवाल ने सीएम की कुर्सी छोड़कर अच्छा नहीं किया। हमारी परमिट से लेकर ठेके पर बहाल मजदूरों के परमानेंट तक के मुद्दे को छोड़ भाग गया- एक लोकपाल ही तो था। थोड़े ठंड रख लेता- कुछ दिन बाद पास करवाता। जाने से पहले हम गरीबों-मजदूरों की भलाई का काम कर जाता। लेकिन नहीं, इ तो व्यवस्था पर हमला करते-करते व्यक्ति पर हमला करने लगा। क्या मतलब था इसको मोदी से। पहले दिल्ली को सुधार लेता फिर निकलता देश को सुधारने। ठीक नहीं किया। हमारे विश्वास को धक्का मारा है। अब तो नहीं भोट देंगे सर
मैं बस हां-हूं करता हूं। दिल्ली के ऑटोवाले बहुत वोकल हैं। उनसे सिर्फ सुनता हूं, वहां ज्ञान लेने की जरुरत महसूस होती है, देने की सोचता भी नहीं।
हरिद्वार उत्तराखंड में। एक ढाबा। इस बार तो हर-हर मोदी है बाबू। हिन्दु धर्म को इ कांग्रेस वाले बेच रहे हैं तो बचाना पड़ेगा न। मैं बताता हूं- कांग्रेस भी तो साधुओं का खूब ख्याल रखती है, सोनिया गाहे-बगाहे अचार्यों से मिलने जाती ही हैं
न, कभी नहीं,- वो तो देखो बेचारे रामदेव बाबा को कैसे दौड़ा-दौड़ा के पिटवाया था। बीच में ही एक दूसरा साधु टोकता है- नहीं सही कह रहे हैं, बाबा रामदेव हमारे समाज का नहीं है, उ साधु नहीं व्यापारी है। हमलोग अघौड़ी हैं- लेकिन वोट इस बार मोदी को ही जाएगा। ब्लाइंट सपोर्टर। मेरी एक साथी मुझसे बोलती है।

मैं वापस लौट रहा हूं। दिल्ली टू वाराणसी। ट्रेन शिवगंगा एक्सप्रेस। मेरे साथ वाले बोगी में अरविंद केजरीवाल भी अपनी पूरी टीम के साथ सफर कर रहे हैं। मीडिया और लोगों की भीड़। मीडिया बारबार अगेंस्ट केजरीवाल सफर कर रहे लोगों से बाइट लेने में व्यस्त है। और लोग अरविन्द केजरीवाल की फोटो खिंचने में। एक इवेंटफूल जर्नी मेरे साथ सफर कर रही एक अंग्रेजी अखबार की एडिटर कहती हैं। बोगी के दूसरे यात्री बीच-बीच में जाकर एकबार केजरीवाल को देख आते हैं- नमस्ते। एक फोटो। एक मेरे बच्चे के साथ फोटो। लौट कर वही लोग केजरीवाल भगोड़ा है कह रहे हैं। रास्ते भर मोदी-केजरी ही छाये रहे। वोट बैंक। मोदी शेर की तरह गरजता है। मोदी में आग है। (यहां जलना किसको है भाई)
एक डिसेंट महिला हैं-वाराणसी में टीचर। कहती हैं- आई सपोर्ट मोदी। बिकॉज ऑल्ड इज गोल्ड मेरे पूछने पर मुस्लिम वोट का क्या होगा बनारस में। इफेक्टिव हैं? कुछ देर बाद यही महिला- बाप रे। बनारस में मुस्लिम बहुत हो गए हैं। फलां मोहल्ले की तरफ जाईये दिमाग पागल हो जाएगा। मुस्लिमों के मोहल्ले में जाने से दिमाग का कौन सा तंत्र फेल हो जाता है मैं पूछना चाहता हूं। मोदी समर्थक साम्प्रदायिक होते हैं तमाम विकास के झूठे-हवाई पुलिंदों के बावजूद।
केजरीवाल ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़कर दिल्ली वालों को बीच मझधार में छोड़ा है, ठेके पर बहाल कर्मचारियों को नियमित नहीं किया है जैसे मुद्दे जायज से लगते हैं लेकिन यही लोग केजरी के खिलाफ तर्क देने लगे- हवाई जहाज से चलता है, मीडिया को गरिया कर ठीक नहीं किया। अरे मीडिया को कैसे गलत बोल सकता है। फिल्म नायक में अनिल कपूर ने कितना कुछ कर दिया था एक दिन में। ये तो 49 दिन में भी कुछ नहीं कर पाया। बिजली-पानी मुफ्त किया लेकिन उसपर भी रोक लग गयी ( क्या केजरीवाल ने रोक लगायी है?), केजरीवाल भी पार्टी टिकट को खूब बेचा है, फोर्ड फाउंडेशन का पैसा है( तो क्या मोदी के पास अंबानी-अदानी का पैसा नहीं है?) एक ही तर्क में एक को स्वीकार और एक को नकारने की समझदारी (?)। एक मोदी भक्त दिल्ली के हैं- कहते हैं- बनारस के लोगों को जानता हूं, मोदी को ही जितायेंगे। क्यों?  केजरीवाल बहुत ईमानदार था जबतक वो मोदी के खिलाफ नहीं बोल रहा था। उसको मोदी के खिलाफ नहीं बोलना चाहिए था। उसे कांग्रेस के खिलाफ ही बोलकर काम चलाना चाहिए था। कांग्रेस का दलाल है-बी टीम
एक केजरी फैन महिला कह रही हैं- मोदी ने हम बनारस वालों के सेंटिमेंट के साथ खेला है। बताईये-हरहर महादेव की जगह खुद की हर हर करवा रहा है। महादेव सबक सीखायेंगे उसको जरुर देख लीजिएगा
चार राज्यों में मोदी-केजरी-राहुल मिले। नीतीश-लालू मिले। अखिलेश-मायावती मिले। मैं सीपीआई-सीपीएम को खोजता रह गया। मुझे याद आता है पासी खाने में पूछे सवाल का जवाब- ललका झंडा भी है इधर। किसी ने कहा- न, सीपीएम वाला तो बंगाल में है
मैं उसको एडिट करके लिख रहा हूं- ललका झंडा वाला बंगाल की खाड़ी में कूद गया है।

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