अपनी टोली के साथ देवेन्द्र विश्वकर्मा |
देवेन्द्र बताते हैं कि उनका ये पुश्तैनी धंधा है। लोग भले उन्हें इज्जत से न देखते हों लेकिन देवेन्द्र को अपने काम से बहुत प्यार है। उत्साह से बताते हैं कि हमारा पूरा गांव दूसरा काम नहीं करता है। हम अपने बच्चों को स्कूल भेजने की बजाय संगीत की शिक्षा देते हैं।
कितना कुछ बदल गया है? मेेरे पूछने पर देवेन्द्र कहते हैं कि हमारे से पहले की पीढ़ी तक के लोगों को मान सम्मान ज्यादा मिलता था।
लेकिन अब फिलिम के आने के बाद सबकुछ बदल गया है।
लोक गीत भी गाते हैं ?
देवेन्द्र की टोली ने बेहतरीन निर्गुण गीत गाकर सुनाया। लोक के रंग में बसा हुआ। जाते-जाते कह गए- आप जैसे लोग बहुत कम हैं जो लोक गीत का फरमाईश किए हैं। यहां तो अब फिलमी गजल चलता है और अब तो भोजपुरी का डिमांड बढ़ गया है।
अश्लील गानों के शोर में लोक गीत का स्वर कहीं गुम सा गया है।
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