बेफिकरी भरी स्माईल |
कभी-कभी आँखे भी हंसती हैं |
देखो तो, मेरी तस्वीर लेता है |
बचपन में हमारा मन भी नंगा होता है |
अब लोग नारा लगाते हैं- लड़ेंगे, जीतेंगे।
जंगल हमारा आपका नहीं किसी के बाप का।
लोगों में उम्मीद है, बच्चों में उम्मीद है। इसलिए इनकी हँसी बनी हुई है। सारी साजिशों को नकाम करती मुस्कान।
उन्हीं चंद मुस्कान को क्लिक किया है मेरे कैमरे ने।
उम्मीद, नये सपने, प्रेरणा, एकता, संघर्ष की सफलता को समेटे कुछ हँसी।
मैं भी हंसता हूं कर लो कैद |
इस हँसी को समेटे है-
बुधेर गांव का आदिवासी बच्चा।
बूढ़ी अम्मा, छोटी सी बच्ची और
किशुन दयाल सिंह जी - महान संघर्ष समिति के सक्रिय कार्यकर्ता।
इनकी लड़ाई को सलाम, इनकी हँसी को सलाम।
जिन्दाबाद
Salaam.... inki ummeed aur aapki koshisho ko....
ReplyDeleteSalaam.... inki ummeed aur aapki koshisho ko....
ReplyDeleteबहुत ही क्रांतिकारी!
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