Monday, April 7, 2014

इत्ती सी हँसी, बड़ी सी उम्मीद

बेफिकरी भरी स्माईल
 महान का एक जंगल है। हजार हेक्टेयर में फैला। वहां महुआ है, तेंदू है और है करीब 164 प्रजाति के पेड़-पौधे, जड़ी-बुटी। करीब 54 गांवों के 85000 लोग बसते-रचते हैं इसी महान जंगल पर। आजकल इन जंगलों पर साया मंडरा रहा है।
कभी-कभी आँखे भी हंसती हैं
 साया न भूत का न प्रेत का। उस मुए कंपनी का। कंपनी महान कोल लिमिटेड को सरकार ने महान जंगल कोयला खदान के लिए दे दिया है। जंगल कटेगा, लोग उजड़ेंगे। विस्थापन, पलायन, मजदूरी, मजबूरी, हताशा, गुस्सा और आंदोलन।

देखो तो, मेरी तस्वीर लेता है



बचपन में हमारा मन भी नंगा होता है
गांव के लोग संगठित हो रहे हैं। बना लिया है महान संघर्ष समिति। महान जंगल को बचाने के लिए महान संघर्ष समिति।
अब लोग नारा लगाते हैं- लड़ेंगे, जीतेंगे।
जंगल हमारा आपका नहीं किसी के बाप का।



लोगों में उम्मीद है, बच्चों में उम्मीद है। इसलिए इनकी हँसी बनी हुई है। सारी साजिशों को नकाम करती मुस्कान।

उन्हीं चंद मुस्कान को क्लिक किया है मेरे कैमरे ने।

उम्मीद, नये सपने, प्रेरणा, एकता, संघर्ष की सफलता को समेटे कुछ हँसी।
मैं भी हंसता हूं कर लो कैद






इस हँसी को समेटे है-
बुधेर गांव का आदिवासी बच्चा।
बूढ़ी अम्मा, छोटी सी बच्ची और 
किशुन दयाल सिंह जी - महान संघर्ष समिति के सक्रिय कार्यकर्ता।


इनकी लड़ाई को सलाम, इनकी हँसी को सलाम।

जिन्दाबाद

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