Sunday, June 1, 2014

तुम बहुत याद आते हो

कई बार बेहद शिद्दत से याद आते हो...लेकिन फिर सोचता हूं शायद तुम्हारे प्यार जिसे मैं पजेसिवनेस बोलता हूं....के काबिल नहीं...
अच्छा लगता है जब तुम्हारे बारे में पता चलता है कि तुम अपनी दुनिया में खुश न भी हो तो कम से कम बेहतर कर रहे हो....ठीक हो...या कुछ बुनने में लगे हो।
मेरे जैसे सेल्फीसों के लिए।। खैर क्या ही कहूं।
कई जरुरत हो तो याद करुंगा। फिलहाल अभी याद आ रहे हो, तुम्हारे साथ बिताए बेहतरीन एक साल और लड़ता हुआ दूसरा साल।
दो साल की दोस्ती। और इतनी करीबीयत। अब कोई नहीं मिलता जिसके गले गलकर रो लूं, कोई बांह नहीं मिलता जिसमें सिमट कर सबकुछ ठीक हो जाने का दिलासा मिले। बस। भागता हूं, खोजता हूं, हंसता हूं, रोता हूं।
सबकुछ नॉर्मल होने का भ्रम पाले चलता रहता हूं।


No comments:

Post a Comment

बेकाबू

 रात के ठीक एक बजे के पहले. मेरी बॉलकनी से ठीक आठ खिड़कियां खुलती हैं. तीन खिड़कियों में लैपटॉप का स्क्रीन. एक में कोई कोरियन सीरिज. दो काफी...