Wednesday, July 23, 2014

एक उदास दिन में मन की बात

20 जूलाई 14
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सुबह से पहले की रात ही परेशान करने वाली रही। सुबह उठा तो कई सारे ख्याल आये मन में। उसे नोट डाउन किया तो ये कुछ शब्द और वाक्य उभरकर आए भीतर से।

मैं लिखता जाता हूँ। और मेरे भीतर कुछ घटता जाता है।।
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फिर मैं दुःख को भी एन्जॉय करने लगता हूँ।। लिखने की वजह मिलती जाती है।।।।

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अपना कोई नहीं है। कोई नहीं है पराया।।
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मैं लिखता जाता हूँ। और मेरे भीतर कुछ घटता जाता है।।

फिर मैं दुःख को भी एन्जॉय करने लगता हूँ।। लिखने की वजह मिलती जाती है।।।।

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मैं लिखकर खुद को सही साबित करना चाहता हूँ। अपने हर गलत को शब्दों से ढकना चाहता हूँ।
अपनों से सहानुभूति चाहता हूँ। अपने हर सही और गलत को तर्क में बदलने की कोशिश करता हूँ।।

जानते हुए भी कि its doesn't work
 
 

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मैं बहुत इमोशनल आदमी हूँ। मेरे पास बस यही है।।

और अब मैं इसे ही बेच कर खाने लगा हूँ।।

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एक घोर व्यक्तिवादी आदमी हूँ।
हमेशा खुद के आसपास एक दुनिया बुनने में लगा रहता हूँ।
दोस्त, दुश्मन, कारोबार
सबकुछ मेरा सोचा हुआ

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मुझे हमेशा लगता है कि लोग मुझे नहीं समझते।।

जबकि सच्चाई है कि मैं लोगों को नहीं समझता।।।

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मैं हर रोज थोड़ा थोड़ा मरता हूँ।

मै हर रोज फिर से जी उठता हूँ।।

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मेरा मन करता है कि एक दिन सारे दोस्तों से कट्टिस कर लूँ।।

वैसे ही जैसे कभी कभी सुसाइडल टेंडेंसी आ जाता है और मरने की इच्छा सबसे ज्यादा होने लगती है।।

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एक दोस्तनुमा दुश्मन है।
कभी कभी रात को फ़ोन करता है। कुछ कमेंट और टोंट कसकर सो जाता है। और इधर मेरी रात हराम।।

दुसरे को ख़ुशी दे नहीं सकते तो ये लोग दुखी भी क्यों कर जाते हैं।। पता नहीं।।।।

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ऐसा अचानक ही हुआ।
कल तक जो लड़का सबसे खुश और जिन्दा था, आज हर पल मरते और घिसटते जी रहा है।।

नजर लगा दियो रे बाबा किसी ने 

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लोग ऐसे ही हैं।
हमेशा आपके फटे में टांग अड़ाने वाले।।

अगर दो समस्याएं हैं तो कोशिश करेंगे 4 और दें जाएँ।।।

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और अंत में, प्रेम निभे तो जिन्दगी कटे    

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