छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के पास बसाया गया नया रायपुर शहर। कुल 40 गाँव के लोगों जिनमें ज्यादातर दलित-आदिवासी थे को विस्थापित करके बसाया गया है। इन 40 गाँव की जगह क्रंकीट के जंगल खड़े कर दिये गए हैं। जिन्दल जैसे प्राइवेट कंपनियों के बोर्ड चारों तरफ लहरा रहे हैं। तलाब को स्विमिंग पूल बनाया जा रहा है। वे 40 गाँव कहां गए? उन गाँवों में रहने वाले बच्चे कहां गए? महिलाएँ कहां हैं? सारे के सारे लोग शासन की बंदूक के नीचे से गायब कर दिये गए...लापता हो गए
Tuesday, June 14, 2016
Friday, June 10, 2016
छोटी-छोटी बातें
हम बड़े शहरों में चले आए। हमारे गाँव, छोटे शहर की पहचान पीछे रह गए। बड़े शहरों में सालों-साल रहते हुए हम अपनी पहचान टटोलने की कोशिश करते रहते हैं।
वहां दूर गाँव में लोग हमें अब भी याद करते हैं। तब भी करते थे। एक-दूसरे को जानते थे, पहचानते थे। आसपास कहीं चले जाओ, हर जगह दुआ-सलाम करने वाले लोग मिल जाते थे।
लेकिन बड़े शहरों में, एक ही दफ्तर और मकान के नीचे काम करने वाले लोगों में भी दुआ-सलाम नहीं, कोई जान-पहचान नहीं होती।
वहां दूर गाँव में लोग हमें अब भी याद करते हैं। तब भी करते थे। एक-दूसरे को जानते थे, पहचानते थे। आसपास कहीं चले जाओ, हर जगह दुआ-सलाम करने वाले लोग मिल जाते थे।
लेकिन बड़े शहरों में, एक ही दफ्तर और मकान के नीचे काम करने वाले लोगों में भी दुआ-सलाम नहीं, कोई जान-पहचान नहीं होती।
छोटी-छोटी बातें
1. ट्रैफिक सिग्नल पर जितनी देर खड़े रहो, उतना मन बैचेनी, गुस्से से भरता रहता है। लेकिन यही ट्रैफिक सिग्नल किसी की रोजी-रोटी का अहम हिस्सा है। उसकी पूरी बैचेनी इस बात पर टिकी होती है कि कितने देर तक लाल बत्ती जलती रहे, उतनी देर वो अपना सामान, फुल, फोन कवर, पंखे, धूप से बचाने वाले शीशे के कवर वो बेच सकता है। अक्सर वो दिख जाता है आईआईटी वाले फ्लाईओवर के पास। उसका चेहरा गोल है, वो गोल-गोल शीशे वाला चश्मा पहनता है। कपड़े भी उसके जहीन से होते हैं। मैं कई बार चाहकर भी पूछ नहीं पाता उसकी कहानी...डर लगता है।
Subscribe to:
Posts (Atom)
कुछ चीजों का लौटना नहीं होता....
क्या ऐसे भी बुदबुदाया जा सकता है? कुछ जो न कहा जा सके, जो रहे हमेशा ही चलता भीतर एक हाथ भर की दूरी पर रहने वाली बातें, उन बातों को याद क...