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लगभग हफ्ते भर शहर में बारिश होती रही। सड़कें, बस और अपनी स्कूटर लिए मैं भी भीगता रहा। रोज नही तो करीब करीब सारे दिन ही। भीगना एक सुख है। बारिश में भीगते हुए सबकुछ भुला जा सकता है। पुराने दुःख और सुख दोनों । सबकी जगह वह भीगना ले लेता है। याद है हम कितनी बार स्कूल से घर लौटते हुए भीगे थे ! अब तो न वो घर है, न स्कूल। एक दफ्तर है, एक पराये शहर का कमरा- बस भीगना इन्हीं के बीच दूरी तय करना है।
अकेले होने का सुख और दुःख दोनों घनघोर बारिश में कहीं और चला जाता है।
हमारा अकेलापन वैसे भी दिन में इधर उधर ही टहलता रहता है। लेकिन रातों को उससे लाख चाहो बच नही सकते।
Insomnia भी तो है। नींद का न आना और अकेलापन। ऐसी गहरी रातों में हम कितने सच्चे हो जाते हैं- खुद के लिये, दुनिया के लिए- अंग्रेजी वाले इसे ही 3am thoughts कहते हैं। Leonard Cohen का गाना सुना है- hello darkness..तो वही। हम अँधेरे से भी संवाद बुनते हैं।
मैं तो कहता हूँ हर आदमी को हफ्ते में एक या दो बार insomnia होनी ही चाहिए। आदमी संवेदनशील बना रहता है- अपने अकेलेपन में, अपने अनिद्रा की स्तिथि में।
इन्हीं अधजगे रातों में हमें भान होता है हम कितने अकेले छोड़ दिए गए हैं, हम एक इंतज़ार में हैं एक अकेलेपन से भाग दूसरे अकेलेपन तक पहुचने के बीच में। झुलते हुए। अवसाद , प्रेम, दुनियादारी सबको ये रात कितनी व्यर्थता से भर दे रहा है। nothingness का भाव कितना गहरा है। हम सब अपने ही बंद अँधेरे कमरों में जीने के लिए छोड़ दिए गए, और उस समय में हम बस इसी उम्मीद में बैठे रहे कि कोई एक हाथ, कोई एक पीली रौशनी हमें राह दिखायेगा, हमारे हाथ को पकड़ इस अँधेरे से खींच लेगा।
जबकि हमें तो खुद ही इन सबसे निकल जाना था। भाग कर कहीं दूर चले जाना था। खुद ही वो सफर तय कर लेना था। लेकिन हम फंसे रहे, और मरते रहे- अपने अकेले होने और इंतज़ार दोनों में।
लगभग हफ्ते भर शहर में बारिश होती रही। सड़कें, बस और अपनी स्कूटर लिए मैं भी भीगता रहा। रोज नही तो करीब करीब सारे दिन ही। भीगना एक सुख है। बारिश में भीगते हुए सबकुछ भुला जा सकता है। पुराने दुःख और सुख दोनों । सबकी जगह वह भीगना ले लेता है। याद है हम कितनी बार स्कूल से घर लौटते हुए भीगे थे ! अब तो न वो घर है, न स्कूल। एक दफ्तर है, एक पराये शहर का कमरा- बस भीगना इन्हीं के बीच दूरी तय करना है।
अकेले होने का सुख और दुःख दोनों घनघोर बारिश में कहीं और चला जाता है।
हमारा अकेलापन वैसे भी दिन में इधर उधर ही टहलता रहता है। लेकिन रातों को उससे लाख चाहो बच नही सकते।
Insomnia भी तो है। नींद का न आना और अकेलापन। ऐसी गहरी रातों में हम कितने सच्चे हो जाते हैं- खुद के लिये, दुनिया के लिए- अंग्रेजी वाले इसे ही 3am thoughts कहते हैं। Leonard Cohen का गाना सुना है- hello darkness..तो वही। हम अँधेरे से भी संवाद बुनते हैं।
मैं तो कहता हूँ हर आदमी को हफ्ते में एक या दो बार insomnia होनी ही चाहिए। आदमी संवेदनशील बना रहता है- अपने अकेलेपन में, अपने अनिद्रा की स्तिथि में।
इन्हीं अधजगे रातों में हमें भान होता है हम कितने अकेले छोड़ दिए गए हैं, हम एक इंतज़ार में हैं एक अकेलेपन से भाग दूसरे अकेलेपन तक पहुचने के बीच में। झुलते हुए। अवसाद , प्रेम, दुनियादारी सबको ये रात कितनी व्यर्थता से भर दे रहा है। nothingness का भाव कितना गहरा है। हम सब अपने ही बंद अँधेरे कमरों में जीने के लिए छोड़ दिए गए, और उस समय में हम बस इसी उम्मीद में बैठे रहे कि कोई एक हाथ, कोई एक पीली रौशनी हमें राह दिखायेगा, हमारे हाथ को पकड़ इस अँधेरे से खींच लेगा।
जबकि हमें तो खुद ही इन सबसे निकल जाना था। भाग कर कहीं दूर चले जाना था। खुद ही वो सफर तय कर लेना था। लेकिन हम फंसे रहे, और मरते रहे- अपने अकेले होने और इंतज़ार दोनों में।
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