Monday, February 19, 2018

सुख़न के साथी, संघर्षों में गुम गए

सब कुछ बड़ा हो गया था। वो ख़ुद भी। मौसम भी और जीवन भी । सुख हाँ सुख ही था दुनियादारी के सारे ही सुख।
सुख तो था लेकिन भरोसा न था। बिना भरोसा का सुख और साथ सब मिट्टी।

तुम थे तो संघर्ष था। ख़ूब सारे संघर्ष। दुःख और अभाव भी। लेकिन तुम बचे रहे दुःख की , उदासी की सारी नदी में, उम्मीद के सागर में।
तुम एक तिनका थे और तिनके पर ही था कितना सारा भरोसा।

अब के सुख में कई साथी दौड़े चले आते हैं लेकिन संघर्ष है नहीं , तो भरोसा भी नहीं।
तो सबकुछ अधूरा पड़ा है।

No comments:

Post a Comment

कुछ चीजों का लौटना नहीं होता....

 क्या ऐसे भी बुदबुदाया जा सकता है?  कुछ जो न कहा जा सके,  जो रहे हमेशा ही चलता भीतर  एक हाथ भर की दूरी पर रहने वाली बातें, उन बातों को याद क...