आज शाम अचानक लड़के का मन उदास हुआ। ऐसा कई शामों में होता है कि लड़के को उसकी याद आती है और वो उदास हो जाता है। लड़के के ख्याल में तो अक्सर वो रहती है, लेकिन मन का उदास होना थोड़ा कम सा गया है।
अब वो उदास होता भी है तो थोड़ा कहने से बचता है। बिल्कूल बचता है। उसने लड़की से कहा था कि वो सारे पुल खत्म कर देगा जो उसतक पहुंचती हो और कहना भी क्या। लड़का लगभग चुप ही रहता है। दुनिया के नक्शे में उसे कोई खड़ा नहीं मिलता जिससे वो मन का कह सके, दरअसल उसके मन में कुछ वैसा रुका भी नहीं है। कुछ भी नहीं।
वो खुद को हर रोज दिलासा देता है कि वो अब तस्सली में है। अब वो दिलासा ही उसका सच बन गया है।
ऐसा होता है अक्सर जब आप लंबे समय तक खुद को दिलासा में रखते हैं। तो फिर सब गढ़मढ़ हो जाता है। दिलासा, सच, झूठ, याद और आँख का भीगना।
सबकुछ कितना सामान्य है। लड़के के जीवन में। किसी का आना, किसी का जाना। किसी का न होना। सबकुछ एक जैसा ही लगने लगा है।
वो याद करता है वे दिन। बीते दिन। उसे याद नहीं आता ज्यादा कुछ। वे दिन याद करता हुआ लड़का छूटे हुए दिनों पर ही पहुंच जाता है। जूलाई से जून और फिर जून से अगस्त। इसबार तो उसे हद ही घटा। अगस्त को भूल बैठा।
मौसम की पहली बारिश।
लड़का जोर लगाकार बारिश में भीगने की कोशिश करता है। जोर लगाकर ही अब वो हर कुछ करने की कोशिश में रहता है। जोर लगाकर हँसता है, जोर लगाकर खुश होता है, जोर लगाकर खाता है, जोर लगाकर मिलता है, जोर लगाकर रौशनी की तरफ दौड़ता है। लेकिन कभी अगर जोर लगाकर चिल्लाता है तो चिल्ला नहीं पाता, एकबार उसने जोर लगाकर रोने की कोशिश की, और जोर-जोर से हँसने लगा।
अब वो उदास होता भी है तो थोड़ा कहने से बचता है। बिल्कूल बचता है। उसने लड़की से कहा था कि वो सारे पुल खत्म कर देगा जो उसतक पहुंचती हो और कहना भी क्या। लड़का लगभग चुप ही रहता है। दुनिया के नक्शे में उसे कोई खड़ा नहीं मिलता जिससे वो मन का कह सके, दरअसल उसके मन में कुछ वैसा रुका भी नहीं है। कुछ भी नहीं।
वो खुद को हर रोज दिलासा देता है कि वो अब तस्सली में है। अब वो दिलासा ही उसका सच बन गया है।
ऐसा होता है अक्सर जब आप लंबे समय तक खुद को दिलासा में रखते हैं। तो फिर सब गढ़मढ़ हो जाता है। दिलासा, सच, झूठ, याद और आँख का भीगना।
सबकुछ कितना सामान्य है। लड़के के जीवन में। किसी का आना, किसी का जाना। किसी का न होना। सबकुछ एक जैसा ही लगने लगा है।
वो याद करता है वे दिन। बीते दिन। उसे याद नहीं आता ज्यादा कुछ। वे दिन याद करता हुआ लड़का छूटे हुए दिनों पर ही पहुंच जाता है। जूलाई से जून और फिर जून से अगस्त। इसबार तो उसे हद ही घटा। अगस्त को भूल बैठा।
मौसम की पहली बारिश।
लड़का जोर लगाकार बारिश में भीगने की कोशिश करता है। जोर लगाकर ही अब वो हर कुछ करने की कोशिश में रहता है। जोर लगाकर हँसता है, जोर लगाकर खुश होता है, जोर लगाकर खाता है, जोर लगाकर मिलता है, जोर लगाकर रौशनी की तरफ दौड़ता है। लेकिन कभी अगर जोर लगाकर चिल्लाता है तो चिल्ला नहीं पाता, एकबार उसने जोर लगाकर रोने की कोशिश की, और जोर-जोर से हँसने लगा।