कुछ लोग होते हैं बेहद मासूम
इतने मासूम कि अपनी मासूमियत से उन्हें घृणा होने लगे
लेकिन दूसरे उसे समझते हैं ढ़ोगा।
बहुत लोगों को तो ये यकीन ही नहीं हो पाता कि इस दुनिया में मासूम लोग भी हैं।
कई बार ही लगता है मासूमियत का आचार बनाकर इस गरमी में उसे सूखने के लिये छत पर छोड़ आना चाहिए।
गर्मी कितनी है इन दिनों..मतलब पिछले हफ्ते तो ऐसे बीते, कट रहे हों जैसे।
फिर दो दिन से बारिश न होने और आकाश के बादलों को देखकर मुस्कुराने में बीते
............................................
बहुत ज्यादा अंदर से आउटरेज का फील करना बहुत बुरा भी नहीं है, या है बुरा पता नहीं।
कितना कुछ दिमाग में ही है हमारे। अगर उसको कहने लग जाओ तो ज्यादातर चीजें कितनी आसान हो जायेंगी।
इतने मासूम कि अपनी मासूमियत से उन्हें घृणा होने लगे
लेकिन दूसरे उसे समझते हैं ढ़ोगा।
बहुत लोगों को तो ये यकीन ही नहीं हो पाता कि इस दुनिया में मासूम लोग भी हैं।
कई बार ही लगता है मासूमियत का आचार बनाकर इस गरमी में उसे सूखने के लिये छत पर छोड़ आना चाहिए।
गर्मी कितनी है इन दिनों..मतलब पिछले हफ्ते तो ऐसे बीते, कट रहे हों जैसे।
फिर दो दिन से बारिश न होने और आकाश के बादलों को देखकर मुस्कुराने में बीते
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बहुत ज्यादा अंदर से आउटरेज का फील करना बहुत बुरा भी नहीं है, या है बुरा पता नहीं।
कितना कुछ दिमाग में ही है हमारे। अगर उसको कहने लग जाओ तो ज्यादातर चीजें कितनी आसान हो जायेंगी।
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