Friday, August 5, 2011

तुम्हे पसंद नहीं
मेरी कविता
मेरी दोस्ती
और मे
ढूंढे नहीं मिलती तुम्हें
प्यार की बाते
मेरी कविता
दोस्ती
और मुझे में
समझा न सका तुमको
प्यार ही नहीं जिंदगी और
भी है कुछ जिंदगी मे
गरीबी है
शोषण है
और है
पत्थर तोरति औरत
इलाहाबाद के पथ पर
एक और है
ऊँची इमारतें
और उनके छाया मे झोपअधि
भी
है भआरी असमानता जिंदगी मे
प्यार ही नहीं केवल जिंदगी मे
संगहार्स है क्रोध है
अवसाद है जिन्दगी मे
अविनाश जीना है तो एन सबको मिला कर जिओ फिर देखो क्या नहीं जिंदगी मे

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