Tuesday, August 9, 2011

घुटन

खोने दो मुझे चांदनी रातो को
दर्द को दर्द बने रहने दो
मेरे आंसू
पलकों पर टिके है कब से
इन्हे पानी समझ टिके रहने दो
अंधेरी रात
कुछ धुँआ सा उठा है दिल में
इन्ही धुँओं में घुलने दो
मत देखो मेरे जख्मो पर
ये घाऊ नासूर हैं
इन्हे नासूर बने रहने दो
कौन आएगा डालने स्नेह का तेल
इस बुझाते चिराग में
अब
में बुझता हु तो
बुझने दो
मैं कब से चुपचाप सुन रहा
आगे भी चुपचाप रहने दो
जब तक छिपा रहेगा
ये राजे गम
अविनाश पर्दा परा रहने दो

No comments:

Post a Comment

कुछ चीजों का लौटना नहीं होता....

 क्या ऐसे भी बुदबुदाया जा सकता है?  कुछ जो न कहा जा सके,  जो रहे हमेशा ही चलता भीतर  एक हाथ भर की दूरी पर रहने वाली बातें, उन बातों को याद क...