प्लेसमेंट,गर्लफ्रेंड
और....और दारू की बोतल
राकेश को पटने से आए
हुए अभी मुश्किल से महीना भर ही हुआ था कि उसे पता चल गया कि जिस शर्मा अंकल से
उसके घर वाले तक सिर्फ उनके शराब पीने की वजह से नफरत करते थे। उसी शराब की बोतल
को दिल्ली में लड़के बिस्तर पर सोने से पहले किसी डॉक्टर के सुझाये दवा की तरह
पीते हैं। दारू पीना यहां आपके पोस्ट-मार्डन होने का लाइसेंस की तरह होता है।
इस पीने-पिलाने में बिहार से आए लड़के भी खुब
हिस्सा लेते थे।कोई अपने ‘बिहारिये रह गया रे।’ टाइप लेवल को हटाने के लिए पीता था,कोई किसी
लड़की के प्यार में वेवफाई पाने या उसमें और ज्यादा गहरी रूमानियत लाने के लिए
पीता था। लेकिन इनमें ज्यादातर सिर्फ इसलिए पीते थे कि कभी-कभी शाम को इनके आठ बाई
दस के कमरे में कॉलेज की एक-दो लड़कियां पीने के लिए आ जाती थीं। फिर इस पूरे
इवेंट को पार्टी का नाम दिया जाता था। इस पार्टी में पीने-खाने से लेकर शकीरा के गाने पर थिरकने तक का इंतजाम होता था।
सबसे मजेदार होता डांस सेशन। राकेश,महेश और अनिल
ये लोग मूक दर्शक बने रहते लेकिन विवेक इन सबमें पीछे नहीं रहना चाहता था। वो कहता
‘अरे। बकलोलो। यही तो मौका होता है लड़कियों से
बात करने का,उनके करीब जाने का।’ लेकिन ये लोग सोचते,
‘मैं क्यूं जाउं। उन्हें खुद आना चाहिए हमसे बात
करने।आखिर हमारा भी कुछ है।’ इसी ‘कुछ’ के चक्कर में वे
अलग-थलग पड़ते जा रहे थे। हर बार वे लोग बात करने आगे बढ़ते लेकिन ‘स्साला इ स्वाभिमान’ ही बीच में आ टपकता।
जस्टिन वीवर से लेकर गागा और शकीरा होते हुए
पार्टी ‘कौन नशे में नहीं बताओ जरा..’, ‘मैं
शराबी हूं’ ‘चेहरा न
देखो...चेहरों ने लाखों को लूटा...’ जैसे गानों पर खत्म होता था। फिर सभी एक-मत से
प्लेसमेंट के बारे में बतियाते थे। किसी का तर्क होता “पागल हो तुम लोग।इ कॉरपोरेट मीडिया में जाकर गलत
राह पर जा रहे हो, हमें बदलाव के लिए कुछ करना होगा।” यह ‘कुछ’ क्या होगा,इसका जवाब उसके पास नहीं होता।
कोई कहता ‘यार,मुझे
जर्नलिज्म करना है-पैसे मुझे नहीं चाहिए।’ यह अलग बात है कि बाद में वही लड़का सबसे ज्यादा
पैसे पर प्लेसमेंट पाता है। कोई कहता ‘यार,अब हाथ-पर-हाथ धरे नहीं बैठा जा सकता,कुछ तो
करना ही होगा....।’ बात को बीच में ही काट कर विवेक कहता ‘बेटा पहले क्वार्क तो करना सीख जा...।’
फिर
मोर्चा सीनियर और मुखर्जी नगर रिर्टन टाइप लड़के संभाले लेते थे। इसके बाद क्लास
के हर लड़के-लड़कियों के बारे में पोस्टमार्टम किया जाता था। बिहारियों के आठ बाइ
दस कमरे में हर के पास अपने गम थे।कोई प्लेसमेंट के लिए रो रहा था तो कोई एक अदद
गर्लफ्रेंड के लिए। लेकिन दारू के साथ इनके गम भी मानों बह जाते थे। पटने का राकेश भी इन सब चीजों में इन्जॉय करने की
कोशिश करने लगा था।लेकिन............
(जारी..)
(नोट; कल्पना पर आधारित,
वास्तिवकता के पुट खोजने के अपने रिस्क हैं। इसके लिए कहानीकार जिम्मेदार नहीं)
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