वो जो चला आया है- डिल्ली, बंबई..कलकत्ता
रोटी-रोजी की तलाश में
वो भागा हुआ आदमी नहीं- न ही पलायनवादी-है विस्थापित
क्योंकि अभी भी मेट्रो..ट्राम और लोकल में सफर करते हुए उसका मन चला जाता है- घर पर
फ्लैशबैक में चलने लगता है घर..उसकी दिवारें..लकड़ी का चूल्हा.रसोई..टोकरी में रखे कुल्हाड़ी..कुदाल..हंसुआ और खुरपी
वो खाना चाहता है उसी टीन की थाली में..पीना चाहता है लोटे में पानी..जिसमें लेकर जाता था कलेवा(खाना) वो बाबू जी के लिए खेत में
वो मेट्रो..ट्राम..लोकल से उतर चलाना चाहता है घर के कोने में रखी चौबीस इंच वाली साईकिल.भरना चाहता है हवा-पंप से
जिंदगी में
वो आज भी वापस जाकर तोड़ आना चाहता है- मुसहरी टोला..बभन टोली..दुसध टोली और चमार टोली को जो बने हैं जाति के नाम पर
उसके भीतर अब भी प्रेम बचा है- उस पड़ोस की लड़की के लिए..जिसने प्रेम की शुरुआत में ही एक दिन आकर कलाई में बांध दिया था-राखी-इस डर से कि लोग न सोचे गलत कुछ भी
वो फिर से पढ़ना चाहता है उन चिट्ठियों को जो उस लड़की ने सब्जी के कटोरे के नीचे दबा कर दिया था
और जिसके कई-कई टुकड़े कर बहा दिया था उसने बाथरुम के फ्लश में
वो लड़की अब भी याद है उसे जिसके होंठों की चर्चा करते लड़के अक्सर कहा करते- कि.....
वो लौट जाना चाहता है अपने दसबजिया स्कल में फिर से..फिर से क्लास से भाग पहुंच जाना चाहता है-किसी सिनमेमाघर में
फिर से क्रिकेट में हार-जीत को मोहल्ले की हार-जीत मानकर लड़ना चहता है- एक सूडो लड़ाई और फोड़ना चाहता है सर दूसरी पार्टी वालों की।
वो देना चाहता है क्लास में पूछे हर सवाल का जवाब
क्योंकि लड़कियां सिर्फ तेज लड़कों से करती हैं बात- देती है भाव
उसे अभी भी है इंतजार जादू की उस छड़ी की- जिससे बदल देना चाहता था वो दुनिया
होना चहता था-गायब-लूटना चाहता था बैंक और बांट देने के सपने लूटे पैसे गांव के गरीबों में
बचपन- जब संजय दत्त, सन्नी देओल, अंडरवर्ल्ड,गैंग..शक्तिमान..डोगा- सब मिलकर तय करते थे उसके सपने।
लौट जाना चाहता है अपने गांव.अपने घर..एक दिन- बचपन को याद करते हुए