Thursday, January 17, 2013

खूंट में पैसा नानी के जैसा





 
हम सबकी यादें अपनी नानी से जुड़ी हुई हैं_______ मुझे आज भी याद है जब मैं अपनी नानी से अठन्नी और रुपया लेकर महालेक्टो चॉकलेट खाने भाग जाया करता...नानी और पैसे पर पहली बार जे सुशील की कलम चली है..संभवततः मैने पहली बार फेसबुक पर इस सब्जेक्ट को देखा है...एक अच्छी कविता जो कई बार पढ़ने की मांग करती है..

खूंट में पैसा
नानी के जैसा
पैसा तू कैसा
मैं तो जैसे को तैसा न ऐसा न वैसा
बस पैसे के जैसा
फिर नानी कैसी
नानी
गांठ खुले तो खूंट के जैसाी
केक के भीतर चाकलेट के जैसी
और मां -मां के मां जैसी
लोरी के बोल जैसी
लाई के गुड़ जैसी
न ऐसी न वैसी
नानी तो बस नानी जैसी

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