Friday, January 25, 2013

''सबकुछ का एक दिन''


एक सूरज उगा है आज, किनारों को सुकून देता
धुएं से झांकता, विशाल झीलों के चेहरों का अभिवादन करता,
एक सहज सत्य फैलाता विशाल मैदानों में, रॉकी पर्वतों के पार
एक रोशनी, छतों को जगाती, हर छत के नीचे, एक कहानी
हमारी मूक भंगिमाएं कहती, खिड़कियों के पीछे जाते हुए.
मेरा चेहरा, तुम्हारा चेहरा,लाखों चेहरे सुबह के आईने में,
जम्हाई से जीवन में उठते, दिन में बढ़ते अपनी ऊंचाई तक:
पेंसिल सी पीली स्कूल बसें, ट्रैफिक लाइटों की लय,
फलों के ठेले: मौसम्मी और संतरे इंद्रधनुष की तरह सजे
हमसे तारीफ मांगते. चांदी रंगों की भारी ट्रकें- लदी कागज़ या तेल से- ईंट या दूध से, हाईवे पर जगमगाती हमारे साथ,
हमारे रास्ते में मेजें साफ करने को, पर्चियां पढ़ने को, या
ज़िंदगियां बचाने को- ज्यॉमेट्री पढ़ने को, या राशन पानी लाने को जैसे मेरी मां लाती थी बीस साल तक
ताकि मैं ये कविता लिख सकूं.
हम सब ज़रुरी हैं उस एक रोशनी की तरह जो हमसे गुज़रती है,
वही रोशनी जो ब्लैकबोर्ड पर दिन का सबक पढ़ाती है:
समीकरण सुलझाने का, इतिहास पर सवाल उठाने का और परमाणुओं की कल्पना का, कि ‘‘ मेरा भी एक सपना है’’
हम सपने देखते रहते हैं,
या वो दुख की नामुमकिन शब्दावली जो ये नहीं बताएगी कि
बीस बच्चों की डेस्क खाली क्यों हैं जो गैरहाज़िर हैं आज
और हमेशा, हमेशा के लिए. कई प्रार्थनाएं, लेकिन एक रोशनी
शीशे की खिड़िकियों में रंग भर देती हैं, कांस्य प्रतिमाओं में जान डाल देती है, गर्माहट भर देती है हमारे संग्रहालयों की सीढ़ियों पर और हमारे पार्कों की बेंचों पर
जहां मांएं बैठ कर अपने बच्चों को दिन में फिसलते देखती हैं.
एक खेत, हमारा खेत, हमें जोड़े रखता है हर तने से
मकई के, हर उस गेंहूं की बाली से जिसे पसीने और हाथों ने
बोया है, हाथ कोयला बीनते या बनाते पवनचक्कियां
मरुस्थलों में और पहाड़ियों पर जो हमें गर्म रखते हैं, हाथ
जो गड्ढे खोदते, पाइप बिछाते और केबल डालते हैं, हाथ
जैसे मेरे पिता के हाथों की तरह कटे फटे,
जो गन्ने काटा करते थे
ताकि मेरे भाई को और मुझे किताबें और जूते मिल सकें.
धूल खेतों की और रेगिस्तान की, शहरों की और मैदानों की
एक ही हवा में फैलती-हमारी सांस में. सांसें. सुनो इसे दिन भर
चिल्ल पों करते कारों की सुहावनी आवाज़ों के बीच,
बसें जो उतरती हैं पेड़ों से ढकी सड़कों पर, कदमों की आवाज़ों का संगीत, गिटारों और सबवे की चीखों के बीच,
अपने कपड़ों के तार पर चिड़िया का गाना जिसकी उम्मीद नहीं होती.
सुनो: खेल मैदानों में झूलों की चरमराहट, ट्रेनों की सीटियां,
या कॉफी टेबलों के बीच की फुसफुसाहट, सुनो: दरवाज़े जो हम खोलते हैं हर दिन एक दूसरे के लिए, कहते हैं: हैलो, सैलोम,
ब्योन ग्योरनो, हाउडी, नमस्ते, या ब्यूनोस डायस
उस भाषा में जो मुझे मेरी मां ने सिखाई है- हर भाषा में
बोलती उस एक हवा में जो हमारी ज़िंदगी को ढोती है
बिना किसी पूर्वाग्रह के, जैसे ये शब्द निकल रहे हैं मेरे होठों से.
एक आकाश: अपालाचियन और सियेरा ने जिसकी बादशाहत पर दावा किया था, और मिसीसिपी और कोलोरेडो ने अपना रास्ता बनाया था समुद्र तक. शुक्रिया करो अपने हाथों की उपलब्धियों का वक्त रहते:
जो स्टील से पुल बुन देते हैं, एक और रिपोर्ट पूरी करते हैं
अपने बॉस के लिए, एक और घाव सिलते हैं
या यूनीफॉर्म, किसी पेंटिंग पर ब्रश की पहला स्पर्श
या फ्रीडम टावर का आखिरी तल
आकाश में प्रवेश करता जो हमारे लचीलेपन का नतीज़ा है.
एक आकाश, जिधर हम कभी कभार आंखें उठा के देखते हैं
थक कर काम से: किसी किसी दिन अपनी ज़िंदगी के मौसम
का अंदाज़ा लगाते हुए, किसी दिन शुक्रिया करते उस प्रेम का
जो बदले में प्रेम देता है, कभी तारीफ करते हुए मां की
जो जानती है कि देना कैसे है, या माफ करते पिता को
जो वो नहीं दे पाता जो आप चाहते हैं.
हम घर की तरफ चलते हैं: बारिश में भीगे या बर्फ से भारी,
या गोधूलि की पकी-लालिमा में, लेकिन हमेशा- घर,
हमेशा एक आकाश के नीचे, हमारा आकाश. और हमेशा एक
चांद जैसे कि मूक नगाड़ा थाप दे रहा हो हर छत पर और
हर खिड़की पर, एक देश के- हम सभी-
सितारों को देखते
उम्मीद- एक नया तारामंडल
इंतज़ार कर रहा है हमारा कि हम उसे माप लें
इंतज़ार कर रहा है हमारा कि हम उसे नाम दें-
एक साथ मिल कर.

कवि रिचर्ड ब्लैंको
(अंग्रेज़ी से अनुवाद सुशील झा)
sabhar- bbchindi.com

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