Sunday, June 29, 2014

हेयर कटिंग का इमोशनल हो जाना


गौरव मुनिरका में हेयर कटिंग सैलून चलाता है। मथुरा के रहने वाले गौरव का एक जमाने में मुझ से करीब-करीब दुगुने लंबे बाल थे। गौरव के गांव में एक तालाब भी था। इतना गहरा कि चार हाथी एक-दूसरे पर खड़े हो जायें तो भी पानी में डूबेंगे ही।

इसी पोखर में गौरव अपने दोस्तों के साथ हर रोज नहाने जाता- घर वालों से चोरी-छिपे।  लेकिन उसकी चोरी हर बार पकड़ी जाती। उसके भीगे लंबे बालों की वजह से।
एक दिन गौरव और उसके दोस्तों ने फैसला किया- लंबे बाल जाय तो जाय लेकिन तालाब में नहाना नहीं छूटना चाहिए।
और अंत में, गौरव ने मन मसोस कर गंजा होना कबूल किया।

मेरी कहानी गौरव से नहीं मिलती फिर भी आज उसके दुकान पर मैंने अपने बाल कुर्बान कर दिये हैं ताकि समाज के प्रचलित मानकों में फिर से 'शरीफ आदमी' बन सकूं।

वही शरीफ आदमी जो मैं आज से एक साल पहले हुआ करता था- अपने गांव में, घर में, रिश्तेदारों में। अब मुझे अपने बालों को हर रोज तेल लगाने की जरुरत नहीं, हर पांच-दसेक मिनट पर अपने बालों को सहलाने की जरुरत नहीं, अब बालों को समेट कर पीछे चोटी बाँधने की जरुरत नहीं रही, अब उस बंधे चोटी से होने वाले दर्द से भी मुक्ति मिली।
बालों को लेकर पुलिस वाले का कमेंट भी नहीं सुनना पड़ेगा, मेरे लंबे बालों पर नाना-मामा-मौसा को लंबे-लंबे भाषण नहीं देने पड़ेंगें, उन्हें अब मुझ में कुसंस्कारी लक्षण नहीं दिखेंगें।
गांव के बच्चे भी अब डर कर भागेंगे नहीं, कुत्ते भौकेंगे नहीं, कुछ टीनएजर मेरे पीठ पीछे मुझे सलमान-हिरो- संजय कहकर नहीं चिढ़ायेंगे।
पड़ोसी की भाभियां नचनियाँ कहकर खिचला भी नहीं पायेंगी। और न ही माँ को मेरे बालों में उग आए जट्टा (उलझे-बेतरतीब बाल) के लिए रोना पड़ेगा, रात को बालों में रोते हुए तेल लगाने से भी वो मुक्त हुयी।

अब कोई पटना स्टेशन पर मेरे पास आकर यह नहीं कहेगा कि- 'भैया आप डांस सिखाते हो'?
न ही मैं उसे डांट कर कहूंगा- 'गो,गो, भागता है कि नहीं यहां से'।

अब मुझे अपने रिश्तेदारों और गांव वालों से, कथित सभ्य समाज से अपने बालों को छिपाने के लिए गमछा सर पर बाँधे भी नहीं रहना पड़ेगा। अब खाने के वक्त बालों को संभाले रखने की चिंता नहीं होगी। अब मेरे लंबे बालों को देखकर रेस्तरां में बैठे लोग मुझे घूरेंगे नहीं, सड़कों पर मुझे अजनबी नजरों से नहीं देखा जायेगा, बैंक में जाने पर कोई कर्मचारी मजाक नहीं उड़ायेगा, 'क्या हुलिया बना रखा है' जैसे सवाल हर रोज नहीं सुनने को मिलेंगे। अब मुझे कंघी करने की चिंता नहीं होगी, बिना बाल भिंगाये नहाने के बाद बिना नहाया सा नहीं लगेगा।
अब मैं अपने बालों को प्यार नहीं कर पाउंगा, अपने बालों को कई तरह से बांध कर तो कभी हवा में उछाल कर फोटो के लिए पोज भी नहीं दे पाउंगा।

कोई गांव में यह नहीं कहेगा कि- 'फलां के बेटे ने अपनी माँ से लड़ाई कर ली है और अब अलग रहने लगा है, कि अब साधु बनेगा'। न ही ट्रेन में कोई सदाकत आश्रम में 35 सालों से कांग्रेस कार्यकर्ता अंकल मिलेंगे जो पहले तो मेरे लंबे बालों को फिलॉसफर, साहित्यकार, लेखकों से जोड़ मुझ में महानता के गुण खोजेंगे और फिर जाते-जाते वैराग्य न अपनाने की सलाह देते हुए घर वालों की खातिर बालों को कटवाने की सलाह भी देते जायेंगे।

अब मैं शरीफ हूं, मैं अपने लंबे बालों से मुक्त हूं, मैं ऐसे समाज में रहने को अभिशप्त हूं जो आपके बालों की लंबाई, आपके पहनावे और आपके तमाम दिखावे की चीजों से आपके चरित्र, आपकी भलमनसाहत को नापता है।

इस बीच उन सबका शुक्रिया जिन्होंने लंबे बालों के बावजूद लफुआ नहीं समझा, टिन्ही हिरो भी नहीं। माँ जिसने कभी कटवाने की सलाह को जिद नहीं बनने दिया, वो लड़की जो हमेशा मौका मिलते ही मेरे बालों में चोटी बाँधती रही, वो भाई जिसे उम्मीद थी कि इत्ते लंबे बाल किए हैं तो अब इसे किसी बढ़िया से सैलून में जाकर लूक देगा...
आदमी अपने बालों को लेकर भी इमोशनल हो सकता है अब ही जाना........
                                                    ।।सबका आभार।।

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