Tuesday, September 2, 2014

खुद से बात #5

इक भुलावा है। एक जाल है। और हम उसी में गोल गोल उलझे हैं।।

दूसरों के पसंद नापसंद को ढोते। अपने अहं को लपेटे।
भीड़ में खड़े होकर खुद को सबसे अलग समझते। कभी होशियार तो कभी मुर्ख साबित होते।
इसलिए हमारी पीठ भीतर से झुक सी गयी है।।

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