Tuesday, September 2, 2014

रात का रिपोर्टर पर किसी ने लिखा है


मन बहुत उचट सा गया है। खुद की बनायी चीजें ही झूठ, फरेब और दुकानदारी लगने लगी है। सच भी यही है। हम सब अपने-अपने सपनों के ठेकेदार से हो गए हैं। कम से कम मैं तो जरुर। बार-बार महसूस होता है कि जो करना था, जो करने आया था, वो नहीं करके सबकुछ कर रहा हूं। इसलिए कई बार ऐसे फेज से गुजरता हूं जब गुमनामी और बंद अँधेरी गली में खुद को गुमाने का मन होने लगता है। इसलिए कई दोस्तों से दूर, फेसबुक से भी हो गया हूं। लेकिन अचानक ही अभिषेक ने ये मेल किया तो मन भर आया। इतना प्यार, इत्ता भरोसा। देखकर डर लगता है। हर रोज दूसरों को छलने चला मन खुद के किये पर ही शर्मिंदा होता है। कुमार गौरव ने अपने फेसबुक स्टेट्स पर रात के रिपोर्टर का जिक्र किया है। कहने वाले कहेंगे कि मैं उस स्टेट्स को यहां लगाकर आत्मप्रचार कर रहा हूं। जी हां, कई बार बिना किसी लाग-लपेट के कुछ आदमियों का खुदपर भरोसा देखकर आत्ममुग्ध हो ही जाता हूं। जबकि जानता हूं कि धोखा दे रहा हूं खुद को भी और अपने तमाम आसपास के लोगों को भी।
वैसे इस स्टेट्स को यहां शेयर करना इसलिए भी जरुरी था क्योंकि फलां-फलां पद को सुशोभित कर रहे महान लोगों ने नहीं लिखा है बल्कि सड़कों पर लगातार लाठी खाते रहे, आंदोलनों में जेल जाते रहे, फर्जी मुकदमों को झेलते रहे और सही को सही, गलत को गलत कहने का साहस रखने वाले कुमार गौरव ने लिखा है, जिनकी ईमानदार प्रशंसा और आलोचना दोनों मेरे लिये फलां-फलां महान संपादकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और वरिष्ठों से कहीं अधिक है..
तमाम झूठ पर खड़ा होकर भी अगर कुछ सच करने की कोशिश करता हूं तो इसमें ऐसी ही प्रतिक्रियाओं से आयी हिम्मत और उम्मीद की भूमिका है....अविनाश चंचल


जूनियर तुम लिखते रहो। उम्र में हमसे छोटे होने के बावजूद तुमसे जब भी मिलता हूं, हर बार नया सिखता हूं।हमसे पहले अाइआइएमसी में पढ़ाई की। अखबार में नौकरी करने के बाद अब महान के जंगलों में हो। जब भी तुमसे मिला नए जोश और उमंग के साथ देखा। जिन्दगी को नए नजर से देखते हुए। बिल्कुल अलग। बिल्कुल अलहदा। बीजी रहते हो। फिर भी कुछ न कुछ लिखते हो। कभी लीची की मिठास याद दिलाते हो।कभी भीड़ के बीच मां के अकेलापन का एहसास कराते हो। तुम्हारे ब्लॉग को पढ़कर घटते जंगल और मरते जंगलवासी की खबर मिल पाती है। मुस्कुराते बच्चे और जंगल भी खूबसूरत हो सकती है यह तो तुम्हारे कैमरे ही बताते हैं। तुम कुछ लिखोगे,इसका इंतजार रहता है। क्योंकि तुम जब लिखते हो नया लिखते हो। मालूम नहीं जूनियर कहना सही रहेगा या..........rat ka reporter

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