Wednesday, September 10, 2014

वामपंथः मिथक और सच्चाई

ये स्टेट्स भगवा संघियों के ज्ञान के लिये जनहित में जारी

 
  कुछ बातें क्लियर होनी जरुरी है। नहीं तो आप भगवा और संघी विचारधारा से लैस बारबार पॉलिटिकल गलती करते रहेंगे। दरअसल वामपंथ में कई धाराएँ हैं। सीपीआई, सीपीएम, सीपीआई (माले), सीपीआई (माओवादी) और भी छोटे-बड़े सैकड़ों संगठन। लेकिन आप भगवा झंडा फहराने की उत्तेजना में अक्सर ये बातें भूल जाते हैं,  जिसका नतीजा होता है कि जेएनयू जैसे पोस्ट मॉर्डन यूनिवर्सिटि में भी खड़े होकर आप भले छात्रों के हितों, रोजगार और तमाम अहम मसलों को भूलकर जय श्रीराम का नारा तो लगा देते हैं, लेकिन आईसा को माओवादियों से जोड़ कर उनसे सवाल पूछने लगते हैं और आपको हजारों छात्रों के सामने अपने पॉलिटिकल ज्ञान पर शर्मिंदा होना पड़ता है।

इसलिए जरुरी है कि आप सभी जिसमें फेसबुक के पॉलिटिकल पंडित सहित पूरा भगवा बिग्रेड शामिल है को कुछ फैक्ट्स बताया जाय जिससे वो आगे ऐसी गलती करने से बचें।

   आईसा, एआईएसएफ, एसएफआई और इसी तरह माले, सीपीआई और सीपीएम का स्टैंड कई मामलों में अलग-अलग हैं। नक्सलवाद का ये तमाम मुख्यधारा की राजनीतिक वामपार्टी विरोध करती हैं। बंगाल में नक्सलियों ने सबसे ज्यादा सीपीएम के कैडरों पर हमला किया है।  यहां तक कि कश्मीर के मुद्दे पर भी विभिन्न वामपंथी पार्टियों में एकमत नहीं है। इसलिए सीपीआई वाले से ये कहना कि तुम कश्मीर को पाकिस्तान को देना चाहते हो..आपके पॉलिटिकल साइंस पर ही सवाल खड़े कर देता है।

 इसी तरह माओवादियों से ये कहना कि आप तो यूपीए की सरकार में शामिल हो जाते हो ये भी आप ही को हास्यास्पद बनाता है।

  फेसबुक पर वामपंथी अप्रोच से लिखने और बात करने वाले कई लोग (जिन्हें मैं जानता हूं) किसी खास पार्टी के कार्ड होल्डर नहीं हैं। कई मौकों पर वो वामपंथी पार्टियों की आलोचना करते भी दिखते हैं। इसलिए उनसे जब आप वामपंथी पार्टियों के बारे में सवाल करते हैं तो वहां भी आप हास्य के विषय ही बनते हैं।

  पूरे देश भर में वामपंथी पार्टियों के हजारों कैडर हैं, जो जमीनी स्तर पर रात-दिन खपे रहते हैं और अपने आसपास के समाज के सवालों से जुझते रहते हैं। तो ऐसा नहीं है कि वामपंथी सिर्फ फेसबुक पर ही दिखते हैं। एक फैक्ट यह भी है कि कांग्रेस और बीजेपी के बाद वामपंथी पार्टियों के पास सबसे ज्यादा जमीनी कैडर हैं। हां, हर आदमी ने अपनी भूमिका तय की है। कोई लिखकर, कोई ब्लॉक और जिला मुख्यालय पर धरना करके, कोई गली नुक्कड़ पर नाटक करके अपनी भूमिका तय कर रहा है।

  बहस कुछ बेसिक समझ की मांग करता है। मुझे लगता है कि आगे से जब भी आप किसी वामपंथी पार्टी या वामपंथी अप्रोच से लिखने वालों से मिलेंगे तो इतनी समझ बेसिक समझ के साथ ही बात करेंगे। एकाध और मिथक का स्पष्ट होना जरुरी है, मसलन चीन को लेकर लगभग सभी वामपंथी कार्यकर्ताओं की समझ स्पष्ट है कि वो अब साम्यवाद की राह को छोड़कर पूंजीवादी सिस्टम में प्रवेश कर चुका है।


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