खुशी बहुत क्षणिक चीज है। मसलन मैं इस बात से भी खुश हो जाता हूं कि ज्यादातर दिनों में मुझे ऑफिस के लिये हरी बस मिल जाती है, एसी बस के पैसे बच जाते हैं। या फिर ये कि कभी-कभी ऑफिस के बिल्कुल गेट पर आकर बस धीमी हो जाती है और मुझे दस कदम चलने की बचत हो जाती है।
काश, दुख भी क्षणिक होता। ये तो आता है जो जड़ हो जाता है। भागने का नाम ही नहीं लेता।
काश, दुख भी क्षणिक होता। ये तो आता है जो जड़ हो जाता है। भागने का नाम ही नहीं लेता।
No comments:
Post a Comment