Monday, May 25, 2015

दिल्ली के तीन कॉमरेड...

एक जमाने की बात है।  दिल्ली में दो क्रांतिकारी रहते थे। एक राजधानी के टॉप इलाके में रहता था। टॉप बोले तो पॉश जैसे ग्रेटर कैलाश, लूटियन जोन और ऐसी ही कई सारे जगहों पर। अपने  बंगले-कोठियों में। बॉलकनी, लॉन में सुबह-शाम कॉफी की चुस्की लेते हुए। दूसरा वो था जो मुनिरका, कटवरिया सराय या ऐसे ही गली-कुचे में हर महीने कमरे का किराया भरते सुबह-शाम पानी का इंतजार करते दिखता था।
दोनों क्रांतिकारियों का कभी-कभी मिलन भी हो जाया करता।  शहर के किसी बड़े सेमिनारों में। किसी बड़े मुद्दे पर टॉप क्रांतिकारी अपनी बुलंद आवाज में नारे उछालता था। गली-कुचे वाला उन नारों को बड़े ही श्रद्धा भाव से लपकने दौड़ता, लेकिन तबतक टॉप कॉमरेड अपनी गाड़ी में फुर्र हो चुका होता।
टॉप कॉमरेड ट्विट करता था। गली कुचे वाला कॉमरेड फेसबुक पर लंबा-लंबा पोस्ट लिखता।
लेकिन एक तीसरा कॉमरेड भी था, जो टॉप कॉमरेड को रिट्विट करता और गली-कुचे वाले के पोस्ट पर जाकर गाहे-बगाहे कमेंट कर आता । ये तीसरा कॉमरेड गली-कुचे से निकल वसुंधरा-गाजियाबाद के फ्लैट में शिफ्ट हो चुका था। वो अब टॉप के संगत में रहना चाहता था। हिन्दी अखबारों में लेख लिखता, लेकिन गली-कुचे वालों से भी साथीपन बनाये रखता था। बीच-बीच में चंदा देता। वो क्रांतिकारियों के विशाल मीडिल क्लास का हिस्सा बन चुका था, जिसके पास टू बीएचके, एक बिना ड्राईवर वाली गाड़ी थी।
कभी-कभी इन तीनों तरह के क्रांतिकारियों के दर्शन जनता को भी हो जाते। कभी-कभी तीनों क्रांतिकारी जंतर-मंतर पर मिलते। टॉप के प्रति विशेष सम्मान लिये गली-कुचे वाला, गली-कुचे वाले को हिकारत से देखता टॉप वाला और दोनों के बीच सेतू की तरह डोलता मीडिलक्लासी कॉमरेड।
आगे चलकर देखा गया कि मीडिलक्लासी कॉमरेड का बेटा ही टॉप कॉमरेड बन पाया और पहले से टॉप कॉमरेड अमेरिका के किसी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हो इस फासिस्ट कंट्री को अलविदा कह गया। गली-कुचे वाला साथी भी वसुंधरा के किसी फ्लैट में शिफ्ट हो चुका था।
कहते हैं उन्हीं दिनों देश के किसानों की जमीन छिनी जा रही थी। आदिवासियों को विस्थापित किया जा रहा था और क्रांति दिल्ली के किसी ट्रैफिक सिग्नल में फँसकर दबी रह गयी थी।

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