Monday, May 25, 2015

जवान होते लड़के का शहर…

अकेले रहना। ढ़ेर सारे दोस्तों के बीच घिरे रहना। प्रेम में डूबे रहना। दिन-दिन भर कुछ न करना। कॉलेज बंक करना। नाव लेकर गंगा के उस पार चले जाना। अशोक सिनेमा के बाहर लाइन में घंटों खड़े हो फर्स्ट शो सिनेमा का टिकट लेना। दरभंगा हाउस की तरफ गंगा किनारे बैठे रहना। कविताएँ सुनाना-पढ़ना-लिखना। यूनिवर्सिटी वाली चाय दुकान पर हाथों में अखबार लिये घंटों बहस करते रह जाना। नोट्स बनाना। एक-दूसरे को बांटने का सुख जानना। दोस्त को प्रेमिका संग सिनेमा जाने अपनी बाईक दे देना और खुशी-खुशी कॉलेज से गाँधी मैदान पैदल आ जाना। कुरता पहने, खादी का झोला लटकाए, यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी के बाहर खुद को तुरम्म खां समझना। कम पैसे होने पर भी दसों लोगों के साथ खाना खा लेना। रात-रात भर फ्री टॉकटाइम वाले फोन पर बातें करते रह जाना। गाँधी मैदान में बिना काम ही दिन-दिन भर बैठे रह जाना। बोरिंग रोड में शाम ढ़ले दिल्ली को उतरते देखना। मोर्या लोक के बाहर ठेले पर दोस्तों के अच्छे नंबरों से लेकर प्रेमिका की सहमति तक के बाद पार्टी कर लेना। राजीव नगर से अशोक राजपथ तक दस किमी का सफर दिन में दो-दो, तीन-तीन बार तय करना। किसी दोस्त को छूड़ाने थाने पहुंच जाना। ट्रैफिक पुलिस को रिश्वत देना। दोस्त के लिये सेकेंड हैंड मोबाईल दिलाने चाँदनी मार्केट पहुंच जाना। महीने के खर्च से पैसे बचा बाकरगंज जाकर कलर टीवी सेट ले आना। एक स्कूटी पर तीन सवारी बैठ गुरुद्धारे में लंगर खाने चले जाना।
पटना शहर ने 16 और 18 की उम्र में घर,  दुनिया, समाज, के  लिये मेरे गुस्से,  कुंठा,अवसाद,  दुख,  प्रेम, नफरत सबको एक साथ झेला है। मेरी सफलता और असफलता में चुपके से मेरे साथ खड़ा रहा है। मेरी आत्मनिर्भर बनने की लड़ाई में, नासमझी में गलती करते, प्रेम के लिये सफल-असफल प्रयास करते यही शहर था जिसने सहारा दिया था।
पटना को उस तरह से याद नहीं कर पाता। लेकिन वो रहता है कहीं भीतर जमा हुआ। एक ऐसा शहर जिसने मेरे बचपन और जवानी के बीच के समय को एक साथ जीया है।
जब पटना में था। जबतक पटना में था। मन वहां से भाग जाने को करता। कभी गाँव। कभी किसी दूसरे बड़े शहर की तरफ। कुछ छोटे-छोटे कोमल सपने लेकर पटना आया था। इसी शहर ने बड़े सपने देखना सीखाया। ऊँगली पकड़ चलना, गिरना और फिर संभलना इसी शहर ने सिखाया।
आज दिल्ली में रहते, जीवन की राह पर गिरते-पड़ते इस शहर की कमी हमेशा खलती है, जहां पहुंचने के लिये पार करना होता था एक नदी…तय करना होता था रेल का सफर..और बोलना होता था एक व्याकरण रहित बेलौस बोली।।
(पटने का लड़का)

1 comment:

  1. अविनाश भाई आप तो रूला देते हो पटना कि याद दिला के।

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