Wednesday, August 3, 2016

अपने रहस्य को बाँट लेना

पराये लोगों से अपना रहस्य साझा करते वक़्त कितना हल्का महसूस होता है !
अपने लोगों के सामने सुख साझा हो भी जाये, दुःख और जीने का गिल्ट उनसे साझा करते मन में एक संदेह बना रहता है- exposed हो जाने खतरा। फिर उनका judgemental होना भी नही सुहाता। निर्मल वर्मा का कहा कितना सच्चा लगता है ‘जो लोग तुम्हें प्यार करते हैं, वे तुम्हें कभी माफ नही करते’।
लेकिन दूसरों के साथ ऐसा नही होता। आप उनके सामने मन और जीवन की सारी सुलझी-अनसुलझी गुत्थियां खोल सकते हैं – नौकरी, काम, प्रेम, दोस्ती, घर , उम्मीद, चाहत, जीवन और प्लान्स। सबकी बातें ज्यादा सहज होकर की जा सकती है। वहां खुद को judge हो जाने का डर नही होता। आप जानते हैं जिस कॉफ़ी टेबल पर बैठ बात की जा रही है- सारी बातें इसी टेबल पर रह जानी है। और कई बार इस खुलने में आप वहां पहुँच जाते हैं जहाँ आपको भी अपने बारे में नही पता होता। मन की उन गलियों में आप भी पहली बार entry कर रहे होते हैं। अपने भीतर एक पीली सी रौशनी महसूस होती है, जो उन तहखानों का रास्ता बताती है जहां सालो पहले घुप्प अँधेरा जाकर बैठ गया था।
बात करते करते हम अपनी ही खोयी हुई स्मृतियों के खंडहरों को झाँकने लगते हैं।
हमें लगता है हम खुद पहली बार वहां पहुंचे हों। एक टूरिस्ट की तरह। एक आउटसाइडर की तरह खुद को देख पाने की फीलिंग को क्या कहा जाये- दुःख, सुख या एक खाली अफ़सोस- कुछ भी ठीक न कर पाने का।
I love conversation with stranger.

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