Tuesday, August 2, 2016

नर्मदा बचाओ आंदोलन को समर्पित कविता

नर्मदा तुम
सिर्फ नदी नही हो
हज़ार साल पुरानी सभ्यता-संस्कृति हो
जंगल हो
हज़ारों पेड़ हो
खेत हो
गांव हो
बस्ती हो, लोग हो
बच्चों का खेल, किसी हंसती औरत का सफ़ेद दांत हो
ठहाके की गूंज हो
पानी से भरपूर – तुम जीवन हो ।
लेकिन तुम
लूट भी हो
उजाड़ भी हो
तुम डूब हो-
दो लाख लोगों, खेतों, मंदिर, मस्जिदों, दुकानों, स्थानीय कारीगरी, व्यापर, सदियों से सहेजी सभ्यता की स्मृतियों के लिए ।
फिर डैम भी तो हो- 130 मंझोले, 30 बड़े, बिजली हो लाखों घर को अँधेरे में डुबोये,
कोला कंपनी के लिए लाखों लीटर पानी हो, इंडस्ट्री को दिया लाखों हेक्टेयर जमीन हो,
हज़ारो भूमिहीनों की छीन चुकी आजीविका हो,
विस्थापन हो,
छूट चूका खेत-खलिहान, घर-गाँव हो, नर्मदा
तुम मज़बूरी, बेबसी, नेताओं,नौकरशाहों की लूट हो,
तुम 50 हज़ार से ज्यादा परिवार की
जल समाधि हो।
तुम नेशनल इंटरेस्ट हो,
तुम देश के विकास की सबसे बड़ी कब्रगाह हो।

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