Tuesday, August 2, 2016

पाकर खोना है

हम सबने कुछ न कुछ खोया है। एक समय जिन चीजों, जगहों, लोगों से हमें बहुत प्रेम था, वो छूट गए
या फिर हमने जाने दिया उन्हें कई बार खूब खूब शोर मचाया, लेकिन ज्यादातर चुपचाप ही जाने दिया,
क्या ये सच है कि हम पाते ही खोने के लिए है,
मानो तय कर दी जाती हो पाने के दिन ही खोने की तारीख,
Move on कहकर हम आगे बढ़ जाते हैं,
क्योंकि हमें लगता है डर- एक जगह रुके रह जाने का- stuck हो जाने का। लेकिन क्या सच में खोए हुए को हम भूल पाते हैं?, या उनकी स्मृतियां आकर बैठ जाती है भीतर कहीं, हम ढ़ोते रहते हैं उन स्मृतियों को, जो बदल चुका होता है एक गहरे अफ़सोस में। नफरत, गुस्सा, छूट जाने के कारण- याद नही रह पाते,
प्रेम , मोह, स्नेह बचे रह जाते हैं- एक खालीपन के बावजूद ज्यादा तीव्रता से। ये जानते हुए भी कि जाना/खोना/छूटना उस प्रेम को बचा लेने का अंतिम प्रयास है। 

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