टीवी पर हर इलेक्शन डेट से
पहले नरेन्द्र मोदी नजर आने लगे हैं। वही मोदी जिनपर बीच इंटरव्यू को छोड़ कर जाने
का आरोप लगता रहा है। जिनके बारे में कहा जाता था कि वो भीड़ में भले बोल लें
लेकिन इंटरव्यू में नहीं बोल सकते।
शायद मोदी पीएम की कुर्सी
तक पहुंचने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। इसलिए अब लगातार टीवी पर नजर आते
हैं। बिना डरे, बिना झिझके हर सवाल का हंसते हुए जवाब देते।
अलबत्ता। अब पक्षकार सॉरी
पत्रकार ही डरे-डरे से नजर आने लगे हैं। एकदम संकोच से सवाल पूछते, कहीं बुरा न
मान जाये के भाव से ओतप्रोत। इंडिया टीवी, एएनआई, जीन्यूज या फिर एबीपी। हर शो में
पत्रकारों को संकोच करते हुए मोदी से सवाल करते देख रहा हूं।
ये सिर्फ मोदी के उन हजारों
करोड़ रुपये का कमाल है जो मोदी ने पीआर एजेंसी को दिया है। जो पीआर एजेंसी हर
दूसरे दिन मोदी का पेड इंटरव्यू करवाने का इंतजाम करवा रही है या फिर उससे आगे कुछ
और बात है।
कहीं देश का तथाकथित चौथा
खंभा मोदी से डरा तो नहीं है। हल्की सी सख्त सवाल पर मोदी का लाल चेहरा कहीं
मीडिया को डराने के लिए तो नहीं बनाया जाता है। अगर ऐसा न होता तो मोदी से चुनावों
में खर्च किए गए विज्ञापनों का हिसाब लिया जाता, गुजरात दंगों पर लीपापोती वाले
सवाल पूछे जाते हैं, उनके विकास के कॉर्पोरेटी मॉडल पर सवाल नहीं उठाया जाता। ये
सब सवाल गौण कर दिए गए हैं।
कुछ सवाल सेकुलरों से
देश की आजादी के छह दशक बाद
भी अगर मुसलमान सिर्फ और सिर्फ अपनी सुरक्षा के डर के आधार पर वोट दे रहे हैं तो
यह क्यूं न माना जाय कि देश की सेकुलर पार्टियों ने सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों को
वोट बैंक बने रहने दिया है। इसी गणित से सेकुलर और बीजेपी दोनों पार्टियों को
फायदा पहुंचता आया है। इसलिए कोई सच्चर कमिटि की बात नहीं करता, मोदी का डर दिखाता
है। मुसलमानों के विकास की बात नहीं होती, उन्हें दंगा मुक्त भारत के सब्जबाग दिखा
कर ही खुश कर दिया जाता है।
मोदी डराता है, सेकुलर डरे
रहने को मजबूर करता है। और जनता बेहतर विकल्प न होने पर कभी हिन्दु बनकर बीजेपी को
तो कभी मुस्लिम बनकर कांग्रेस में वोट डाल आते है।
एबीपी न्यूज़ वाला तो अच्छा था। हां जासूसी वाला सवाल छोड़ दिया जाए। तो लगभग सारे सवाल पूछे गए थे थोड़ा घुमा फिराकर,सहलाकर। हां बाकी सारे चैनल्स में तो इंटरव्यू हल्के ही थे।
ReplyDeleteमुझे लगता है कि एबीपी वाला बहुत घूमा फिराकर ही सवाल कर रहा था...
Deleteथोड़ा सा सकुचाते हुए, शब्दों को चबाते हुए,
और फिर काउंटर तो बिल्कूल नहीं कर रहा था
हां काउंटर तो नहीं कर रहा था। पर अगर वो घुमाते फिराते ना,,तो थॉपर वाला इंटरव्यू जैसा कुछ हो सकता था। मुझे लगता है कि भागते भूत की झोटान ही काफी होती है। वैसे हां एबीपी वाला इंटरव्यू ज्यादा आक्रामक हो सकता था
Deleteहां काउंटर तो नहीं कर रहा था। पर अगर वो घुमाते फिराते ना,,तो थॉपर वाला इंटरव्यू जैसा कुछ हो सकता था। मुझे लगता है कि भागते भूत की झोटान ही काफी होती है। वैसे हां एबीपी वाला इंटरव्यू ज्यादा आक्रामक हो सकता था
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