माननीय प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी,
सादर प्रणाम
मैं झूठ नहीं बोलूंगा कि मैं यहां कुशल-मंगल हूं और आपके कुशल-मंगल की खबर
टीवी, अखबार और रेडियो तक से चौबीसों घंटे मिलती ही रहती है। फिर भी आशा करता हूं
कि विदेश घूमते हुए खूब मजे में होंगे। आगे बात यह है कि आपको यह चिट्ठी बहुत थक-हार
कर लिख रहा हूं। दरअसल मैं थक गया हूं विकास को खोजते-खोजते। छत्तीसगढ़, झारखंड,
मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश के कई इलाकों में पिछले दिनों इसी विकास को जोहते हुए
भटका हूं, लेकिन कहीं मिलिये नहीं रहा है। आप सही पहचान रहे हैं ये वही विकास है जिसके
बारे में आप चुनाव से पहले भी कहते रहे हैं और आज एक साल बीत जाने के बाद भी मथुरा
में कह रहे थे।
सुना है बहुत से लोग आपकी तारीफ में आपको विकास का पप्पा भी बुलाने लगे हैं। सो, अब अंतिम सहारा आप ही हैं। आप हमारे निजाम हैं
हमको पूरी उम्मीद जगी है कि आप ही हमको विकास तक पहुंचाने वाले सारथी होंगे। दरअसल
अखबार-टीवी ने बार-बार आपके भाषण को सुना-सुना यही उम्मीद पूरे देश की जनता को भी
जगाया है। आप जैसे विकास पुरुष तक पहुंचाने के लिये हम सब मीडिया के साथियों का
शुक्रगुजार हैं।
माननीय मोदी जी, असल मुद्दे
पर आता हूं पिछले दिनों विकास को खोजने के क्रम में देश के कई हिस्सों में भटका तो
मालूम चला कि विकास एक ऐसा शब्द हो चला है जो सारे शब्दों पर भारी पड़ने लगा है। आपको
बताना जरुरी है कि आपकी मेहनत और कृपा से विकास अब इतना भारी हो गया है कि अब नियम-कायदे,
संविधान, लोकतंत्र और मानवता पर भी भारी पड़ने
लगा है।
इस देश में सारी सरकारें, आपके
सारे मंत्री, सारे नौकरशाह, सारे बड़े-बड़े
अमीर लोग विकास लाने में लगे हैं, लेकिन हम अभागे की किस्मत देखिये
कि इ विकास मिलिये नहीं रहा है।
का-का बताये। इ विकास को खोजने कहां-कहां नहीं गए। छत्तीसगढ़ और झारखंड में पता
लगा कि विकास एमओयू साइन करके लाया जाता है। बड़ी-बड़ी कंपनियों से एमओयू साइन कीजिए, फिर नियमों में ढ़ील दीजिए, कानून बदलिये, सेना-पुलिस बुलाकर आदिवासियों-किसानों को उनकी जमीन से बेदखल
कीजिए, कहीं झूठे मुकदमे, कहीं घर पर बुलडोजर चलवाये जाते
हैं तब जाकर कहीं विकास चाचा जमीन पर उतरते हैं।
सुना है विकास चाचा भी जमीन देखकर उतरते हैं। एकदम चकाचक, टाइल्स लगे किसी बड़े साहब, अफसरान की जमीन हो तो बड़े ही नजाकत से हिलते-डूलते, इतराते हुए, झक सफेद धोती-कुरता पहने तो कभी सूट-बूट में विकास चाचा पहुंचते
हैं और जो जमीन धूल-मिट्टी में लिपटी किसी गरीब की हो तो विकास इंदिरा आवास के छत पर
ही लटके रह जाते हैं।
बड़ी मुश्किल है। विकास को गाँव के बड़े बुड्डे बहुत याद करते हैं। प्यार से
वो विकास को विकसवा बुलाने लगे हैं। कहते हैं एकबार इ विकसवा से भेंट हो जाए तो चैन
से जान छूटे यही सोचकर मोदी जी को इतना बहुमत से जीताकर दिल्ली में बैठाए हैं।
लेकिन देखिये न सुनने में आता है कि आप जब-जब विकास-विकास करके गरजते हैं गाँव
में मनरेगा मजदूर फेकन महतो को काम मिलना बंद हो जाता है, इंदिरा आवास योजना के बजट में कटौती हो जाती
है, गरीबों की सब्सिडी खत्म करके अमीरों को टैक्स में 5 प्रतिशत
छूट दे दिया जाता है, उन्हीं उद्योग धंधों के लिये भारी-भरकम
सब्सिडी मुहैया करायी जाती है, स्वास्थ्य सेवाओं का बजट हो चाहे
सरकारी शिक्षा सब जगह कटौती शुरू कर दी जाती है। किसान अपनी जमीन छिनने के डर से व्याकुल
हो जमीन पर अहोरिया मारने (लोटने) लगते हैं।
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि विकास का कोई सूराग नहीं मिल सका। मुझे एकाध बार लगा है
कि आप ही वो युगपुरुष हैं जो विकास लायेंगे और सच में आपने गाँव-गाँव विकास लाने का
एलान किया और विकास भी गाँव के टॉयलेट में जाकर बैठने लगा है। हम कैसे कह दें कि विकास
नहीं दिखा है। हां टॉयलेट में जाकर नहीं देखे लेकिन फील तो किये ही हैं।
आपके भक्त बताते हैं कि विकास कोई एक दिन का खेल नहीं है।
सच बताउं तो हमको भी पहले यही लगता था, लेकिन आपका चुनावी भाषण सुने तो आत्मविश्वास जगा, लगा नहीं विकास चार महीने में
मेरे बैंक खाते में होगा। 15 लाख रुपया का वेश धरकर वो पहुंचने ही वाला होगा लेकिन
एक साल बाद पता चला उ विकास नहीं चुनावी जुमला था।
महोदय, अंत में क्या
लिखें। बस इतना कहना चाहते हैं कि आप अच्छे आदमी हैं। अच्छे से रहते हैं। हमको
फख्र होता है कि हमारा प्रधानमंत्री खुद को प्रधान सेवक बताता है। वो अच्छा-अच्छा
रंग का कपड़ा बदलता है, विदेश में भी स्टाईल मारते हुए सेल्फी लेता है, नौ-नौ लाख
का सूट पहनता है। इस सबसे देश का बड़ा नाम हो रहा है। आप हमारे देश की संस्कृति,
विज्ञान को लेकर गंभीर हैं, गणेश वाला प्लास्टिक सर्जरी का उदाहरण देकर विदेशियों
को अपने चिकित्सा विज्ञान पर सोचने के लिये मजबूर कर दिया है। वो दिन दूर नहीं जब
देश का डंका पूरी दुनिया सुनेगी, लेकिन महोदय इन सबके बीच, यह जानते हुए भी कि
दुनिया में फोकसबाजी जरुरी है, जरा ख्याल कीजिए हमारे लिये भी, हमारे गाँव के
लोगों के लिये भी, फेकन महतो जैसे मनरेगा मजदूर के लिये भी, छत की आस लिये इंदिरा
आवास योजना का राह बटोरते उस बीपीएल वाले के लिए भी थोड़ा सा विकास आए। थोड़ा सा
हम भी विकास को देख पायें, महसूस पायें और बचे तो अपने बाल-बच्चों को भी दिखा
पायें और गाँव के बुढ्ढे भी विकास को देखकर चैन से मर पायें।
आपकी गर्वशील जनता।
अविनाश कुमार चंचल,
जिला बेगूसराय, बिहार।