Tuesday, August 30, 2011






तुम पूछती हो संघर्ष कहाँ है?




अक्सर कहते सुना है तुम्हे




"संघर्ष तो एक रूमानी कल्पना है मेरे मन की ।"




कैसे समझाऊ तुमको




संघर्ष किसी लाल झंडे की जागीर नहीं ,




न ही है वह किसी आन्दोलन की कापी राइट ,




संघर्ष तो गंगा ढाबा के पत्थरो पर दो अंधे जोड़े के कदम-कदम ठोकर खाकर चले जाने में हैं




संघर्ष जे.न.यु में इंकलाब गाने में नहीं,




जे.न.यु गेट पर खड़े ऑटो रिक्सा वाले में है




जो हर आने जाने वाले पर एक निगाह डालता है




और डी टी सी की ऐ.सी बसों को देख सहमत है,




संघर्ष गंगा ढाबे पर काम करने वाले उस छोटू में है




जिसके लिए बड़ी बड़ी किताबी ज्ञान का कोई मतलब नही,




संघर्ष झेलम होस्टल के किसी कमरे में व्यवस्था को कोसने में नहीं ,




सम्पूर्ण सत्ता परिवर्तन की बात करने में नही ,




इस व्यवस्था में जीते हुए , एस सत्ता से लड़ते हुए ,




हर उस आम आदमी में है जो एस व्यवस्था से लड़ता,पिसता,दबता है




फिर भी अपने अस्तित्व की लड़ाई को लादे जाता है,




जिए जाता है




संघर्ष देश के उतर-आधुनिक विश्विदालय में पढ़ने में नहीं




बल्कि यहाँ से पढ़ कर किसी-भी नोकरी में लग जाने में है,




संघर्ष लाल सलाम-लाल सलाम,हल्ला बोल -हल्ला बोल




कहने में नही




संघर्ष तो इस व्यवस्था में रहते हुए ,




अपने जीवन को बचा लेने में है,




जनता हूँ




कोई नयी बात नही बतला रहा तुम्हे




बचपन से सुनती आई हो तुम




"जीवन एक संघर्ष है"




मई भी यही समझा रहा हु तुम्हे




"संघर्ष ही जीवन है"





Tuesday, August 9, 2011

घुटन

खोने दो मुझे चांदनी रातो को
दर्द को दर्द बने रहने दो
मेरे आंसू
पलकों पर टिके है कब से
इन्हे पानी समझ टिके रहने दो
अंधेरी रात
कुछ धुँआ सा उठा है दिल में
इन्ही धुँओं में घुलने दो
मत देखो मेरे जख्मो पर
ये घाऊ नासूर हैं
इन्हे नासूर बने रहने दो
कौन आएगा डालने स्नेह का तेल
इस बुझाते चिराग में
अब
में बुझता हु तो
बुझने दो
मैं कब से चुपचाप सुन रहा
आगे भी चुपचाप रहने दो
जब तक छिपा रहेगा
ये राजे गम
अविनाश पर्दा परा रहने दो

Friday, August 5, 2011

तुम्हे पसंद नहीं
मेरी कविता
मेरी दोस्ती
और मे
ढूंढे नहीं मिलती तुम्हें
प्यार की बाते
मेरी कविता
दोस्ती
और मुझे में
समझा न सका तुमको
प्यार ही नहीं जिंदगी और
भी है कुछ जिंदगी मे
गरीबी है
शोषण है
और है
पत्थर तोरति औरत
इलाहाबाद के पथ पर
एक और है
ऊँची इमारतें
और उनके छाया मे झोपअधि
भी
है भआरी असमानता जिंदगी मे
प्यार ही नहीं केवल जिंदगी मे
संगहार्स है क्रोध है
अवसाद है जिन्दगी मे
अविनाश जीना है तो एन सबको मिला कर जिओ फिर देखो क्या नहीं जिंदगी मे

Thursday, August 4, 2011

आज बात करतें हैं एस नए सहर के बारे मे
हर तरफ आप धापी है लेकिन कोई ऐसा नहीं मिलेगा आपको जो अपने फुर्सत के दो पल आपके साथ साझा करे
तो भाई मुझे तो पटना बहुत मिस हो रहा है
पटना और वहाँ मौर्या की मस्ती
आह>>> मे यहाँ ज न उ के पास रहता हूँ<
यहाँ मन बहलाने के सभी उपकरण मौजूद तो है लेकिन गाँधी मैदान की वो बात कहाँ
पटना कॉलेज और उनिवेर्सित्य की वो मस्ती
मे फिर कहूँगा
आह>>>>
यहाँ दोस्त तो बन रहे हैं लेकिन जितना दिल्ली के बारे में सुना था उतना पाया नहीं
दिल्ली कइ दोस्त मुझे माफ़ करना
ये मेरा होम सिकनेस भी हो सकता है

बेकाबू

 रात के ठीक एक बजे के पहले. मेरी बॉलकनी से ठीक आठ खिड़कियां खुलती हैं. तीन खिड़कियों में लैपटॉप का स्क्रीन. एक में कोई कोरियन सीरिज. दो काफी...